सफ़ी औरंगाबादी के अशआर
बड़ी चीज़ आँख है इंसान पहले आँख पहचाने
नज़र का ताड़ जाना भी तो आधी 'ऐब दानी है
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लब पर फ़ुग़ाँ न आँख में आँसू दिल में दर्द
मैं क्या करूँ ज़माना अगर क़द्र-दाँ है अब
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere