सलीम वारसी का परिचय
उपनाम : 'सलीम'
मूल नाम : सय्यद सलीम वारसी
डाक्टर सय्यद सलीम वारसी 1878 में पैदा हुए। सात साल की उम्र में आपने हिन्दुस्तान छोड़ा। हदीस, क़ुरआन और फ़िक़्ह की तालीम मक्का मुअज़्ज़मा में हासिल की। बाद में मिस्र चले गए। सात साल तक मिस्र के एक कॉलेज में तालीम हासिल करते रहे और तालीम क़दीम और जदीद इल्म के के मुताल्लिक़ हासिल की। बाद में छः साल क़ुस्तुनतुनिया में रह कर फ़्रांसीसी ज़बान पर उबूर हासिल किया। एक साल फ़्रांस में रह कर तुर्क कौंसिल में मुलाज़मत हासिल करली। आपने सात ज़बानों में एम.ए. पास किया। 1913 मैं पैंशन लेकर हिन्दुस्तान आ गए और लाहौर में आकर जरीदा ‘मख़ज़न’ का आग़ाज़ किया। तुर्क फ़ौज में रह कर यूरोप के अक्सर ममालिक के सय्याह रहे। इलावा फ़न्न-ए-तिब के उनको नामा-निगारी का भी शौक़ था। 16 अगस्त 1914 को पार्टी से मुस्तफ़ी हो गए और राजपूताना (यूपी) चले गए। आप अपनी ज़िंदगी को गुमनामी में गुज़ारना चाहते थे। और वैसे भी सिलसिला-ए-औलीया-ए-वारसिया में वारिस अली शाह के दस्त-ए-हक़परसत पर बैअत की और अपनी निजी ज़िंदगी को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा की बहबूदी में बसर करना चाहते थे। हज़रत वारिश-ए-पाक की मोहब्बत ने आपको शाएर बना दिया था। आपका कलाम मुल्क के बेहतरीन और मशहूर रिसालों में छपता था