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शाह अब्दुल हई जहाँगीरी

1859 - 1919 | चटगाँव, बंगलादेश

शाह अब्दुल हई जहाँगीरी के सूफ़ी उद्धरण

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ख़ुदा की मोहब्बत का रास्ता मेहनत और साधना का है, आराम तलबी से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

हमने एक ज़माने तक बहुत दुख झेले, फटा हुआ जूता पहनते थे, एक फटा हुआ लिहाफ़ था, जिसे सर्दियों में ओढ़ते और गर्मियों में उसी को बिछा लेते थे। जब तक मुरीद तकलीफ़ नहीं उठाएगा, वह ग़रीबों का हाल कैसे समझेगा?

दुनियादारी के पर्दे में दीनदारी (धार्मिकता) करना, लेकिन दीनदारी के पर्दे में दुनियादारी मत करना।

समाँ का कमाल ये है कि जैसे बांसुरी के सुरों या क़व्वाली के बोलों से सुनने वालों की एक ख़ास तरह की हालत हो जाती है, वैसी ही हालत घोड़े की टाप की आवाज़ सुन कर भी हो जाए।

मुरीद अपने मुर्शिद का हुक्म पूरा करना अपना फ़र्ज़ समझे और मुर्शिद अपने मुरीद की ख़िदमत को ख़ुद पर मुरीद का एहसान माने।

आध्यात्मिक ज्ञान (इल्म-ए-बातिनी) की ख़ासियत हैं, नर्मी, खुद को छोटा समझना, रहमदिली और नर्मदिली।

हम उस इंसान पर एतबार नहीं करते, जो तरीक़त तो चाहता है लेकिन दुनिया के कामों से भागता है। पहले इंसान दुनियावी कामों में पूरी तरह चुस्त और समझदार हो, फिर वह तरीक़त में आए, तभी हम उसे असली इंसान मानते हैं।

अगर तुम्हारा आना-जाना अर्श तक भी हो जाए, तब भी सभी बुज़ुर्गों का अदब करना, चाहे वे हमारे सिलसिले के हों या किसी और सिलसिले के। हमने तो पूरी दुनिया के बुज़ुर्गों का अदब किया है।

उर्स के दिन हमें जो भी मयस्सर होता है, उसी पर फ़ातिहा दे देते हैं। एक गिलास शर्बत ही सही, लेकिन उर्स के लिए किसी से क़र्ज़ नहीं लेते। हैदराबाद के सफ़र में हमारे पास सिर्फ़ एक रुपया था, और उर्स का दिन आया तो आठ आने की मिठाई ले आए और फ़ातिहा दे कर छात्रों में बाँट दी।

यह रास्ता (तसव्वुफ़) बहुत होशियारी और समझदारी का है। सूफ़ी लोग बहुत होशियार, बेदार और चतुर होते हैं।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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