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शाह अकबर दानापूरी

1843 - 1909 | दानापुर, भारत

बिहार के महान सूफ़ी कवि

बिहार के महान सूफ़ी कवि

शाह अकबर दानापूरी का परिचय

हज़रत शाह अकबर दानापुरी 27 शा’बान 1260 हिज्री मुवाफ़िक़ 11 सितंबर 1843 ई’स्वी बुध के रोज़ नई बस्ती आगरा में पैदा हुए। अकबराबाद में पैदाइश की वजह से आपका नाम मुहम्मद अकबर रखा गया। हज़रत अकबर की मुआ’शरती ज़िंदगी हमेशा सादा रही। लिबास में भी सादगी थी। हमेशा ख़ालता-दार पाएजामा, नीचा कर्ता, शाना पर बड़ा रुमाल और पल्ला की टोपी और कभी अँगरखा ज़ेब-तन फ़रमाया करते थे। आप बहुत ख़लीक़ थे। मिज़ाज में इन्किसार था। हज़रत शाह अकबर दानापुरी का सिलसिला-ए-नसब मनेर शरीफ़ के मशहूर बुज़ुर्ग मख़दूम अ’ब्दुल अ’ज़ीज़ इब्न-ए-हज़रत इमाम मुहम्मद ताज फ़क़ीह के वास्ते से जा मिलता है। ख़ानवादा ताज फ़क़ीह के साथ-साथ मशहूर-ओ-मा’रूफ़ वलिया -ए-कामिला हज़रत मख़दूमा हदिया उ’र्फ़ बीबी कमाल (काको,जहानाबाद) की सीधी औलाद हैं। इस तरह आपको हज़रत सय्यद शहाबुद्दीन पीर-ए-जग्जोत की ज़ुर्ररियत में भी होने का शरफ़ हासिल था। आपके अज्दाद में सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया-ओ-क़ादरिया-ओ-चिश्तिया के नामवर बुज़ुर्ग हज़रत शैख़ सुलैमान लंगर ज़मीन, हज़रत मख़दूम अहमद चिश्ती, हज़रत मख़दूम अखुवंद शैख़ चिश्ती, हज़रत शाह इ’नायतुल्लाह चिश्ती, हज़रत शाह तय्यबुल्लाह चिश्ती नकाब-पोश वग़ैरा शामिल हैं। हज़रत अकबर को बिहार शरीफ़ के मोड़ा तालाब के मशहूर -ए-ज़माना बुज़ुर्ग हज़रत मख़दूम लतीफ़ुद्दीन बंदगी की ज़ुर्ररियत में होने का भी शरफ़ हासिल था। हज़रत अकबर को अपने नानीहाल की तरफ़ से ख़ानदान-ए-सुहरवर्दिया की ज़ुर्ररियत में होने का भी शरफ़ हासिल था। हज़रत अकबर की ता’लीम-ओ-तर्बियत अपने अ'म्म-ए-अक़्दस मौलाना शाह मुहम्मद क़ासिम अबुल-उ’लाई दानापुरी के ज़ेर-ए-तर्बियत हुई। उन्हीं से शरफ़-ए-बैअ’त हासिल हुआ और इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त भी हासिल हुई।ये बुज़ुर्ग अपने ज़माने के औलिया-ए-किबार में शामिल थे। बड़े-बड़े औलिया-ओ-अस्फ़िया आपके दर्स में बैठा करते थे| हज़रत अकबर को अपने चचा के अ’लावा हज़रत मख़दूम शाह मुहम्मद सज्जाद पाक, हज़रत शाह विलायत हुसैन दिलावरी मुनइ’मी, हज़रत शाह काज़िम हुसैन चिश्ती, हज़रत शाह अ’ता हुसैन फ़ानी, हज़रत शाह अ’ली हुसैन अबुल-उ’लाई से भी इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल थी। हज़रत अकबर को शुरूअ’ से ही तबीअ’त में शे’र-ओ-सुख़न का शौक़ मौजूद था।अह्ल-ए-इ’ल्म की सोहबात ने मज़ीद जिला बख़्शी। ख़्वाजा हैदर अ’ली आतिश लखनवी के यादगार मौलाना वहीदुद्दीन वहीद इलाहाबादी से बे-हद मुतअस्सिर हुए और उन्हीं की शागिर्दी इख़्तियार कर ली। वाज़ेह हो कि अकबर इलाहाबादी भी वहीद के ही शागिर्द हुए हैं। तसव्वुफ़ का उ’म्दा मज़ाक़ था। आप ख़ूब मक़्बूल हुए और आपकी शाइ’री अह्ल-ए-दिल के लिए ख़ूब गर्मी-ए- दिल का सामान बनी। एक दीवान तजल्लियात-ए-इ’श्क़ के नाम से आपकी ज़िंदगी में छप कर मक़्बूल-ए-ख़ास-ओ-आ’म हो गया जब कि दूसरा दीवान आपके विसाल के बा’द जज़्बात-ए-अकबर की सुर्ख़ी के साथ तब्अ’ हुआ। जज़्बात-ए-अकबर को अह्ल-ए-दिल ने ख़ूब पसंद किया है। हज़रत अकबर अपने वालिद-ए-माजिद मख़दूम सज्जाद पाक के विसाल के बा’द 1298 हिज्र में ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुल-उ’लाइया, शाह टोली, दानापुर, भारत के सज्जादा-नशीन हुए और ता-उ’म्र रुश्द-ओ-हिदायत का फ़रीज़ा अंजाम देते रहे। आज कल ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुल-उ’लाइया दानापुर के सज्जादा-नशीन हज़रत अकबर के पड़पोते के छोटे साहिब-ज़ादे हज़रत सय्यद शाह सैफ़ुल्लाह अबुल-उ’लाई दानिश-मंद साहिब हैं। हज़रत अकबर दानापुरी के मुरीदीन का हल्क़ा ज़्यादा-तर आगरा, अजमेर, हैदराबाद, दिल्ली, लाहौर और कराची तक फैला हुआ है जहाँ उनके मुरीदीन-ओ-मो’तक़िदीन कसरत से पाए जाते थे। हज़रत अकबर उन जगहों का सालाना दौरा भी करते थे। आप ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ के उ’र्स में अजमेर शरीफ़ और सय्यदना अमीर अबुल-उ’ला के उ’र्स में आगरा हमेशा हाज़िर हो कर उ’र्स मुंअ’क़िद करते रहे। इसके अ’लावा हज़रत सय्यद हसन ज़ंजानी मश्हदी लाहौरी, हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर पाक पट्टन पाकिस्तान और हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहली हिन्दुस्तान, हज़रत शरफ़ुद्दीन बू-अ’ली शाह क़लंदर पानीपत कर्नाल और हज़रत अबू मुहम्मद सालिह बाक़र अ’ली शाह मध्य प्रदेश से भी बड़ी उंसियत-ओ-मोहब्बत थी। मुल्क के मुख़्तलिफ़ गोशों में उनके मुरीदान फैले हुए थे। सैंकड़ों लोग आपके दस्त-ए-हक़-परस्त पर बैअ’त करके गुनाहों की वादी तर्क कर चुके थे। आपने मुख़्तलिफ़ शहरों में ख़ानक़ाह की बुनियाद रखी जिसके ज़रिआ’ रुश्द-ओ-हिदायत का फ़रीज़ा अंजाम दिया जाता रहा। हज़रत शाह अकबर दानापुरी अपनी सज्जादगी के दो बरस बा’द 1884 ई’स्वी में सफ़र-ए-हज पर गए। हज़रत अकबर का ये सफ़र बड़ा तारीख़ी और याद-गार रहा। मुल्क-ए-अ’रब में उनके वालिद के बेश्तर मो’तक़िद मौजूद थे इसलिए उनको किसी क़िस्म की तकलीफ़ न हुई। सल्तनत-ए-उ’स्मानिया के वज़ीर और मदीना शरीफ़ में बड़े-बड़े उ’लमा-ओ-रुउसा के साथ हज़रत अकबर की तारीख़ी मुलाक़ात रही। इस दौरान दो मर्तबा हज़रत अकबर को ख़ाना-ए-का’बा के अंदुरीनी हिस्से में जाने की सआ’दत नसीब हुई। हज़रत अकबर ने उस सफ़र-ए-हज्ज में अ’रब के हालात का भरपूर जाएज़ा लिया और वापस आने के बा’द तारीख़-ए-अ’रब के नाम से एक मुस्तक़िल किताब लिखी जो अपनी नौई’यत के ऐ’तबार से मुंफ़रिद है। हज़रत अकबर का निकाह उनके पीर-ओ-मुर्शिद और अ’म्म-ए-अक़्दस मौलाना शाह मुहम्मद क़ासिम अबुल-उ’लाई दानापुरी की ख़ाहिश के मुवाफ़िक़ शाह विलायत हुसैन दिलावरी मुंइ’मी की साहिब-ज़ादी बीबी नई’मा से हुआ जिनके बत्न से चार साहिब-ज़ादी और एक साहिब-ज़ादे हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी हुए। आपकी चार साहिब-ज़ादी में से दो कम-सिनी में फ़ौत कर गईं। पहली साहिब-ज़ादी का निकाह हज़रत शाह अ’ता हुसैन फ़ानी के पोते और ख़ानक़ाह-ए-मुंइ’मिया अबुल-उ’लाइया रामसागर गया के सज्जादा-नशीन शाह निज़ामुद्दीन अहमद से हुआ और दूसरी साहिब-ज़ादी का निकाह हज़रत शाह मुहम्मद ग़ज़ाली अबुल-उ’लाई काकवी के साहिब-ज़ादे शाह निज़ामी अकबरी काकवी से हुआ। दोनों साहिब-ज़ादी साहिब-ए-औलाद हुईं। हज़रत अकबर दानापुरी के हल्क़ा-ए-शागिर्दी में बड़े-बड़े शो’रा शामिल थे। वो अपने अ’हद के बड़े सूफ़ी शाइ’र कहे जाते थे। इसी शोहरत की वजह से हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और मशहूर शाइ’र बे-दम वारसी आगरा आए और हज़रत अकबर दानापुरी की शागिर्दी इख़्तियार की। जब कुछ माह गुज़रे तो बेदम वारसी को हज़रत अकबर ने अपने शागिर्द निसार अकबराबादी के सुपुर्द कर दिया। आपके मशहूर तलामिज़ा में आपके साहिब-ज़ादे शाह मोहसिन दानापुरी, निसार अकबराबादी, नज़ीर दानापुरी, वाइ’ज़ दानापुरी, रफ़ीक़ दानापुरी, नय्यर दानापुरी, नूर अ’ज़ीमाबादी, अख़तर-ओ-अनवर दानापुरी, हमद काकवी, मोबारक अ’ज़ीमाबादी, इ’र्फ़ान दानापुरी, मज़ाहिर गयावी, फ़िज़ा अजमेरी, शौक़ अजमेरी, सैफ़ फ़रुख़ाबादी, नस्र दानापुरी, यूसुफ़ दानापुरी, बद्र अ’ज़ीमाबादी, लुत्फ़ दानापुरी, रहमत दानापुरी, क़मर दानापुरी, कौसर दानापुरी, यहया दानापुरी, आ’रिफ़ दानापुरी, जौहर बरेलवी, नाज़िश अ’ज़ीमाबादी, शैदा बिहारी, इ’ल्म गयावी, क़ैस गयावी, मस्त गयावी, सहबा गयावी, रौनक़ गयावी, हिंदू गयावी, माह दानापुरी वग़ैरा हैं। आप कसीरुत्तसानीफ़ बुज़ुर्ग थे।आपकी अक्सर तसानीफ़ आपकी ज़िंदगी ही में शाए’ हो कर मक़्बूल-ओ-महबूब हो चुकी थीं । मशहूर तसानीफ़ मुंदर्जा ज़ैल है। सुर्मा-ए-बीनाई (मतबूआ’ 1877 ई’स्वी लखनऊ), शोर-ए-क़ियामत (मतबूआ’ आगरा), तोहफ़ा-ए-मक़्बूल (पटना), चराग़-ए-का’बा (मतबूआ’ 1883 ई’स्वी पटना), ख़ुदा की क़ुदरत (मतबूआ’ 1887 ई’स्वी पटना), नज़र-ए-महबूब (मतबूआ’ 1888 ई’स्वी आगरा), मौलूद-ए-फ़ातिमी (मतबूआ’ 1889 ई’स्वी आगरा), इद्राक (मतबू आ’ 1891 ई’स्वी आगरा), सैर-ए-देहली (मतबूआ’ 1893 ई’स्वी आगरा), इरादा 1893 ई’स्वी आगरा), दिल (मतबूआ’ 1894 ई’स्वी आगरा), तजल्लियात-इ- इ’श्क़ (मतबूआ’ 1898 ई’स्वी आगरा), तारीख़-ए-अ’रब (मतबूआ’ 1900 ई’स्वी आगरा), अहकाम-ए-नमाज़ (मतबू आ’ 1902 ई’स्वी आगरा), रिसाला-ए-ग़रीब-नवाज़ (मतबूआ’1902 ई’स्वी आगरा), अशरफ़ुत्तवारीख़ (मतबूआ’1904 ई’स्वी आगरा), इल्तिमास-ए-मुतअ’ल्लिक़ा (मतबूआ’ 1904 ई’स्वी आगरा), अशरफ़ुत्तवारीख़ दोउम (मतबूआ’ 1907 ई’स्वी आगरा), अशरफ़ुत्तवारीख़ सोउम (मतबूआ’ 1910 ई’स्वी आगरा), जज़्बात-ए-अकबर (मतबूआ’ 1915 ई’स्वी आगरा), नाद-ए-अ’ली (मतबूआ’ 1938 ई’स्वी इलाहाबाद| मल्फ़ूज़ात-ओ-मक्तूबात आपके मल्फ़ूज़ात को निसार अकबराबादी ने जम्अ' कर के आपकी ज़िंदगी ही में 1313 हिज्री में शाए’ कराया । तालिबीन-ओ-सालिकीन के लिए ये रिसाला मुत्मइन बख़्श है| इस के अ’लावा आपके मक्तूबात का मजमूआ’ भी तैयार हुआ जिसे सय्यद अ’ब्दुल वकील अकबरी हिल्स्वी ने जम्अ' किया है। आपका विसाल 67 बरस की उ’म्र में 14 रजबुल-मुरजब्ब 1327 हिज्री 1909 ई’स्वी ब-रोज़-ए-पीर अ’स्र-ओ-मग़रिब के दरमि यान ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुल-उ’लाइया में हुआ और उसी शब 9 बजे आस्ताना-ए-मख़दूम शाह सज्जाद पाक में तद्फ़ीन हुई। आपका मज़ार-ए-मुक़द्दस बंदगान-ए-ख़ुदा के लिए मंबा-ए-फ़ुयूज़-ओ-बरकात है।


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