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शाह अकबर दानापूरी के अशआर
इ’श्क़ में आ’शिक़ की ये मेराज है
क़त्ल हो क़ातिल का मुँह देखा करे
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किस घर में किस हिजाब में ऐ जाँ निहाँ हो तुम
हम राह देखते हैं तुम्हारी कहाँ हो तुम
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टैग : घर
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रंग-ए-गुल फीका है जिस के सामने
इतना रंगीं यार का रुख़्सार है
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टैग : गुल
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मर मिटे तेरी मोहब्बत मैं मोहब्बत वाले
उन पे रश्क आता है ये लोग हैं क़िस्मत वाले
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हैं शौक़-ए-ज़ब्ह में आशिक़ तड़पते मुर्ग़-ए-बिस्मिल से
अजल तो है ज़रा कह आना ये पैग़ाम क़ातिल से
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टैग : क़ातिल
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भूलेगा न ऐ 'अकबर' उस्ताद का ये मिस्रा
साक़ी दिए जा साग़र जब तक न हो बे-होशी
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देखें ख़ुश हो के न क्यूँ आप तमाशा अपना
आईना अपना है अ’क्स अपना है जल्वा अपना
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मुँह फेरे हुए तू मुझ से जाता है कहाँ
मर जाएगा आ’शिक़ तिरा आरे आरे
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टैग : आ’शिक़
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या-ख़ुदा 'अकबर' की कश्ती को निकाल
तू ही इस बेड़े का खेवन-हार है
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या-ख़ुदा 'अकबर' की कश्ती को निकाल
तू ही इस बेड़े का खेवन-हार है
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टैग : ख़ुदा
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हाज़िर है बज़्म-ए-यार में सामान-ए-ऐ’श सब
अब किस का इंतिज़ार है 'अकबर' कहाँ हो तुम
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टैग : इंतिज़ार
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न कमर उस की नज़र आए साबित हो दहन
गुफ़्तुगू उस में अ’बस उस में है तकरार अ’बस
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कोई रश्क-ए-गुलिस्ताँ है तो कोई ग़ैरत-ए-गुलशन
हुए क्या क्या हसीं गुलछर्रः पैदा आब-ओ-गिल से
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दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छा
तबीअत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
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इ’श्क़ में आ’शिक़ की ये मेराज है
क़त्ल हो क़ातिल का मुँह देखा करे
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टैग : आ’शिक़
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पीरी ने भरा है फिर जवानी का रूप
आ’शिक़ हुए हम एक बुत-ए-कम-सिन के
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टैग : आ’शिक़
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رند بھی اکبرؔ ہے صوفی بھی ہے عاشق وضع بھی
کہتے ہیں اربابِ معنی میرا دیواں دیکھ کر
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ہم سے پھر جائے زمانہ بھی تو کیا ہوتا ہے
دل ہے مضبوط فقیروں کا خدا ہوتا ہے
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere