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Sheikh Abdul Qadir Jilani's Photo'

शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी

1078 - 1166 | बग़दाद, इराक़

सिल्सिला-ए-क़ादिरिया के बानी और नामवर सूफ़ी

सिल्सिला-ए-क़ादिरिया के बानी और नामवर सूफ़ी

शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी का परिचय

उपनाम : 'मुही'

मूल नाम : अब्दुल क़ादिर

जन्म :गीलान, अन्य

निधन : अन्य, इराक़

शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गीलानी जिन्हें ग़ौस-ए-आ’ज़म के नाम से भी जाना जाता है| आप हंबली तरीक़ा के निहायत अहम सूफ़ी, आ’लिम-ए-रब्बानी और सिलसिला-ए- क़ादरिया के बानी हैं| आपकी पैदाइश यकुम रमज़ान 470 हिज्री मुवाफ़िक़ 17 मार्च 1078 ई’स्वी में ईरान के सूबा किर्मानशाह के मग़रिबी शहर गीलान में हुई| इसी लिए आपका एक और नाम शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर गीलानी भी है। शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गीलानी का तअ’ल्लुक़ हज़रत जुनैद बग़दादी के रुहानी सिलसिले से मिलता है| आपको बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त शैख़ अबुल-हसन अ’ली हँकारी के नाम-वर ख़लीफ़ा शैख़ अबू सई’द मोबारक मख़ज़ूमी से हासिल थी | शैख़ अब्दुल क़ादिर गीलानी को तसव्वुफ़ की दुनिया में ग़ौस-ए-आ’ज़म के नाम से जाना जाता है। तमाम उ’लमा-ओ-औलिया इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर गिलानी मादर-ज़ाद वली थे | आप बचपन ही से लह्व -ओ-लइ’ब से दूर रहे| शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गिलानी का शज्रा-ए-नसब वालिद की तरफ़ से हज़रत इमाम हसन और वालिदा की तरफ़ से हज़रत इमाम हुसैन से जा मिलता है| यूँ आपका शज्रा-ए-नसब हज़रत मुहम्मद पाक सल्लल्लाहु अ’लैहि-ओ-आलिहि वसल्लम से जा मिलता है| अठारह साल की उ’म्र में शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गीलानी तहसील -ए-इ’ल्म के लिए बग़दाद तशरीफ़ ले गए जहाँ आपको फ़िक़्ह के इ’ल्म में शैख़ अबू सई’द मुबारक मख़ज़ूमी , इ’ल्म-ए-हदीस में शैख़ अबू-बक्र बिन मुज़फ़्फ़र और तफ़्सीर के लिए शैख़ अबू मुहम्मद जा’फ़र, शैख़ इब्न-ए-अ’क़ील जैसे असातिज़ा मयस्सर आए। तहसील -ए-इ’लम के बा’द शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर गिलानी ने बग़दाद शहर को तर्क किया और इराक़ के सहराओं और जंगलों में पच्चीस साल तक सख़्त इ’बादत-ओ-रियाज़त की| 1127 ई’स्वी में आपने दुबारा बग़दाद में सुकूनत इख़्तियार की और दर्स-ओ-तदरीस का सिलसिला शुरूअ’ किया| जल्द ही आपकी शोहरत -ओ-नेक-नामी बग़दाद और फिर दूर-दूर तक फैल गई| चालीस साल तक आपने तसव्वुफ़ की तब्लीग़ी सरगर्मियों में भरपूर हिस्सा लिया| नतीजतन हज़ारों लोग तसव्वुफ़ से वाबस्ता हुए| इस सिलसिला को मज़ीद वसीअ करने के लिए दूर-दराज़ वुफ़ूद को भेजने का सिलसिला भी शुरूअ’ किया| ख़ुद शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गीलानी ने तसव्वुफ़ की इज्रा के लिए दूर-दराज़ के सफ़र तय किए और बर्र-ए-सग़ीर तक तशरीफ़ ले गए| कहा जाता है कि आपने मुल्तान (पाकिस्तान )में भी क़याम किया| शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गीलानी ने तालिबीन-ए-हक़ के लिए गराँ-क़द्र किताबें तहरीर कीं| उनमें से कुछ के नाम दर्ज ज़ैल हैं| अल-फ़त्हुर्रब्बानी वल-फैज़ुर्रहमानी’ फ़ुतूहल-ग़ैब’ जिला -उल-ख़ातिर’ विर्दुश्शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर अल-जीलानी’ बहजतुल-असरार’ शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर गीलानी मुही तख़ल्लुस करते थे |उनकी तहरीर में हक़ीक़त-ओ-मा'रिफ़त का एक दरिया बहता नज़र आता है| नस्र के अ’लावा शे’र-ओ-सुख़न में भी उनकी दिल-चस्पी थी| बेशतर फ़ारसी कलाम उनकी शे’री अ’ज़मत-ओ-रिफ़अ’त की बैइन सुबूत है| बा’ज़ क़ादरी ख़ानक़ाहों में शैख़ का क़दीम दीवान भी मौजूद है जिसमें राइज अश्आ’र से दर्जनों अश्आ’र ज़्यादा मिलते हैं जो कि अब नायाब हैं। शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर गिलानी का इंतिक़ाल 1166 ई’स्वी को हफ़्ता की शब 8 रबीउ’ल-अव्वल 561 हिज्री को नवासी साल की उ’म्र में हुआ| आपकी तद्फ़ीन बग़दाद में आपके मदरसा के इहाता में हुई।


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