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Sufinama
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सुल्तान बाहू

1630 - 1691 | शोरकोट, पाकिस्तान

पंजाबी और फ़ारसी ज़बान के मा’रूफ़ सूफ़ी शाई’र

पंजाबी और फ़ारसी ज़बान के मा’रूफ़ सूफ़ी शाई’र

सुल्तान बाहू का परिचय

उपनाम : 'बाहू'

मूल नाम : सुल्तान बाहू

जन्म : 01 Jan 1630 | शोरकोट, पंजाब

निधन : 01 Mar 1691 | शोरकोट, पंजाब, पाकिस्तान

सुल्तान बाहू 1 जमादीउस्सानी 1039 हज्री मुवाफ़िक़ 17 जनवरी 1630 ई’स्वी में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के अ’हद में शहर-ए- शोरकोट में पैदा हुए। ये ऐवान क़बीला से तअ’ल्लुक़ रखते थे जिसका सिलसिला हज़रत अ’ली इब्न-ए-अबी तालिब से जा कर मिलता है। ऐवान हज़रत अ’ली के वो बच्चे हैं जो हज़रत फ़ातिमातुज़्ज़ुहरा के अ’लावा दूसरी बीवियों से हैं। उनके वालिद बायज़ीद मुहम्मद एक पेशावर सिपाही थे और बादशाह शाहजहाँ की फ़ौज में एक ओ’हदे पर फ़ाइज़ थे। उनकी वालिदा बीबी रास्ती एक कामिल आ’रिफ़ा थीं और अपने ख़ानदान और अ’ज़ीज़-ओ-अक़ारिब में ब-तौर-ए-एक पाकीज़ा और पारसा औ’रत के तौर पर मा’रूफ़ थीं। सुल्तान बाहू का नाम बाहु उनकी वालिदा ने दिया था ताकि उनका नाम हमेशा के लिए “हू” के साथ जुड़ जाए। सुल्तान बाहु फ़रमाते हैं। नाम-ए-बाहू मादर-ए-बाहू निहाद ज़ाँकि बाहू दाइमी बाहू निहाद (या’नी बाहू की माँ ने बाहू नाम रखा क्यूँकि बाहू हमेशा “हू” के साथ रहा। सुल्तान बाहू के पैरो-कार, मो’तक़िदीन और मुरीदीन उनको पैदाइशी वली गरदानते हैं। उनका मिज़ाज इब्तिदा से ही तसव्वुफ़ की तरफ़ माए’ल रहा और बचपन से अपनी वालिदा से उनकी बातिनी और रुहानी ता’लीम-ओ-तर्बियत तसव्वुफ़ के मुताबिक़ होती रही। उनकी वालिदा ही उनकी हक़ीक़ी उस्ताद रहीं। सुल्तान बाहू का तअ’ल्लुक़ सिलसिला-ए-सरवरी क़ादरी से है। इस सिलसिला का आग़ाज़ शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी से हुआ। शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी से तअ’ल्लुक़ रखने वाले दो सिलसिले हैं। एक सरवरी क़ादरी और दूसरा ज़ाहिदी क़ादरी। सुल्तान बाहू का अ’क़ीदा सरवरी क़ादरी में मुकम्मल है इसलिए उन्होंने सरवरी क़ादरी सिलसिला को ही अपना नसबुल-ऐ’न बनाया| सुल्तान बाहू ने अपने मुर्शिद की तलाश के बारे में जो बात कही है वो बहुत ही दिल-चस्प है। उनके मुताबिक़ ये अपने मुर्शिद की तलाश में 30 साल तक सरगर्दां रहे। एक दिन जब शोरकोट के अतराफ़ में घूम रहे थे कि अचानक हज़रत मौला अ’ली ज़ाहिर हुए और उनको हज़रत मुहम्मद पाक की एक मज्लिस में ले गए। चारों ख़लीफ़ा भी उस मज्लिस की ज़ीनत बने हुए थे और शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी भी वहाँ मौजूद थे। हज़रत मुहम्मद पाक ने सुल्तान बाहू का हाथ पकड़ा और कहा कि ये अब तुम्हारा रुहानी पेशवा है। इसीलिए शैख़ सुल्तान बाहू अपने मुर्शिद के लिए हमेशा शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी का ज़िक्र अपनी किताबों में किया है। शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी के हुक्म पर सुल्तान बाहू ने देहली में अ’ब्दुर्रहमान जीलानी देहलवी के हाथ पर बैअ’त की। सुल्तान बाहू ने हर लम्हा इस्तिग़राक़-ए-हक़ मेंमशग़ूल रहने की वजह से ज़ाहिरी इ’लम हासिल नहीं किया। फिर भी उन्होंने एक सौ चालीस किताबें तालीफ़ कीं। आपका विसाल 1 जमादीउस्सानी 1102 हिज्री मुताबिक़ मार्च 1691 ई’स्वी में हुआ। सुल्तान बाहू का मर्क़द-ए-मुबारक गढ़ महाराजा पाकिस्तान में है। आपका उ’र्स हर साल जमादीउस्सानी की पहली जुमे’रात को मनाया जाता है। आपकी मुंतख़ब तसानीफ़ के नाम मुंद्रजा ज़ैल हैं अब्यात-ए-बाहू (पंजाबी शाइ’री), दीवान-ए-बाहू (फ़ारसी शाइ’री), ऐ’नुल-फ़क्र, कलीदुत्तौहीद (कलाम), शम्सुल-आ’रिफ़ीन, अमीरुल-कौनैन, तेग़-ए-बरहना , रिसाला-ए-रूही शरीफ़, गंजुल-असरार, असरार-ए-क़ादरी, औरंग शाही, जामिउ’ल-असरार, फ़त्ताहुल-आ’रिफ़ीन, नूरुल-हुदा (कलाम), ऐ’नुल-आ’रिफ़ीन, कलीद-ए-जन्नत, कशफ़ुल-असरार वग़ैरा।

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