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सय्यदना अमीर अबुलउला

1592 - 1651 | आगरा, भारत

सय्यदना अमीर अबुलउला के सूफ़ी उद्धरण

इंसान को चाहिए कि वह अपनी भलाई और फ़ायदे को दूसरों की भलाई के मुक़ाबले में ज़्यादा अहमियत दे।

सूफ़ी की क़द्र कोई नहीं जानता। सूफ़ी अपनी क़द्र ख़ुद जानते हैं।

मुश्किलों का समाधान ईश्वर से डरने और सही रास्ते पर चलने में है।

सूफ़ी वह नहीं, जो चिल्ला खींचे, अकेले में इबादत करे, बल्कि वह है, जो ख़ुद को मिटा दे।

ज़िंदगी का मक़सद ख़ुदा की इबादत है, यही दुनिया की कमाई है।

दुनिया-दार लोग कम हिम्मत वाले, नासमझ और ग़ाफ़िल होते हैं। उनकी ज़िंदगी दौलत, पैसा, शोहरत में ही उलझी होती है, जबकि फ़क़ीर लोग ख़ुदा के दीदार की तलाश में उलझे और बेचैन रहते हैं।

दरवेशी, बादशाही से हज़ार दर्जा बेहतर है, क्योंकि इस से आम लोगों को कोई नुक़सान नहीं होता।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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