वाजिद जी दादूपंथी के दोहे
बाजीद अति ही अद्भुत साहिबी, संकहि सुर मुनि लोइ।
गहि करि गरदनि मारई, पला न पकरै कोइ।।
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पसहु कौं प्यारौ लगै, न्यारौ कीयो न जाय।
आगैं आगैं बाछरा, पीछैं पीछैं गाय।।
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बाजीद मरजाद को मैटई, तीनि लोक को ईस।
सुर नर मुनि जोगी जती, पाइनि नांवहि सीस।।
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बाजीद मिर मार दह दिसि करैं, लकुटी लीयैं हाथ।
कृपा बिना को लावई, चरन कंवल कौं माथ।।
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जल थल महियल सोधि सब, अब सु रहयौ इहि ठांऊँ।
मोहि समरपै जो कोऊँ, साधनि मुखि ह्वै खांऊँ।।
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साध सु मेरौ सरीरु है, हौं संतनि कौ जीव।
स्वांमी सेवग यूँ मिलैं, ज्यूँ ब दूध अरु घीव।।
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पास न छाडूं दास को, मुख देखत सुख मोहि।
बाजीद विवेकी जीव है, बहुत कहा कहौं तोहि।।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere