1680 - 1757 | क़सूर, पाकिस्तान
पंजाब के मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र जिनके अशआ’र से आज भी एक ख़ास रंग पैदा होता है और रूह को तस्कीन मिलती है
उस दा मुख इक जोत है, घुंघट है संसार ।
घुंघट में ओह छुप्प गया, मुख पर आंचल डार ।।
उन को मुख दिखलाए हैं, जिन से उस की प्रीत ।
उनको ही मिलता है वोह, जो उस के हैं मीत ।।
ना खुदा मसीते लभदा, ना खुदा विच का'बे।
ना खुदा कुरान किताबां, ना खुदा निमाज़े ।।
बुल्लया अच्छे दिन तो पिच्छे गए, जब हर से किया न हेत
अब पछतावा क्या करे, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत
बुल्लया औंदा साजन वेख के, जांदा मूल ना वेख ।
मारे दरद फ़राक दे, बण बैठे बाहमण शेख ।।
Bulhe Shah
Hindustani Adab Ke Memar
सूफ़ी उद्धरण 23
होली 1
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