संपूर्ण
ई-पुस्तक1
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परिचय
कलाम3
काफी76
दोहा23
शबद7
ब्लॉग1
दोहरा12
अठवारा1
बारहमासा1
सूफ़ी उद्धरण21
होली1
बुल्ले शाह
कलाम 3
काफी 76
दोहा 23
उस दा मुख इक जोत है, घुंघट है संसार ।
घुंघट में ओह छुप्प गया, मुख पर आंचल डार ।।
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उन को मुख दिखलाए हैं, जिन से उस की प्रीत ।
उनको ही मिलता है वोह, जो उस के हैं मीत ।।
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बुल्लया अच्छे दिन तो पिच्छे गए, जब हर से किया न हेत
अब पछतावा क्या करे, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत
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ना खुदा मसीते लभदा, ना खुदा विच का'बे।
ना खुदा कुरान किताबां, ना खुदा निमाज़े ।।
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बुल्लया औंदा साजन वेख के, जांदा मूल ना वेख ।
मारे दरद फ़राक दे, बण बैठे बाहमण शेख ।।
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