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सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
गाल दोनों बिम्कुट, औ चेहरा जैसे नान-पाव। अपनी अपनी रोटियाँ, सब छिपाओ बोटियाँ।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
ग़ज़ल
गाल मवाली चंगा मन्दा जो चाहे सो बोलेतुरश जवाब मिट्ठे मूंह विचों लज़्ज़त असीं चखेंदे
मियां मोहम्मद बख़्श
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क़िस्सा काव्य
हीर वारिस शाह
वारिस शाह सुहागे ते अग्ग वांगूं, स्युना खेड़्यां दा सभो गाल आही ।561. मांदरियां नूं सद्द्या
वारिस शाह
दोहा
साध कहावै आप में चलै दुष्ट की चाल
साध कहावै आप में चलै दुष्ट की चालबाद लिये फूला फिरै बहुत बजावै गाल
सहजो बाई
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
अमीर उठ कर बैठ गये। सिर उठा कर उसकी तरफ़ देखा।सूद-ख़ोर हिम्मत पाकर बोलाः "ऐ मेरे
लियोनिद सोलोवयेव
ख़ालिक़ बारी
ख़ालिक़-बारी
ख़द रुख़्सार हिंदवी बोल जो कहिए गालआज इमरोज़ बदाँ फ़र्दा रा तू ब-गोई काल
अमीर ख़ुसरौ
छंद
दलहि चलत हलहलत भूमि थल थल जिमि चल दल
भनि 'गंग' प्रबल महि चलत दल जहंगीर-शाह तुव भार तलफुंफुं फनिन्द फल फुंकरत सहस गाल उगिलत गरल
गंग
गीत
तेरे बने के गाल है पापड़ टेढ़ी-मेढ़ी आँखें हैंमेरा बना है वो शहज़ादा जो नाज़ों का पाला है
शकील बदायूँनी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
गधे की गर्दन में बाहें डालकर और अपना भीगा हुआ गाल उसकी गर्म, गंधाती गर्दन से
लियोनिद सोलोवयेव
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
"दूसरे सुल्तानों के दिमाग़ों में भी इसी तरह के ख़याल आते हैं। बढ़िया सौग़ात लेकर अपने
लियोनिद सोलोवयेव
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
मुबारक नाम का मेरा एक हब्शी थी, जो वालिद मरहूम के ज़माना से ही यहाँ था।