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सूफ़ी उद्धरण
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी लेख
तारीख़-ए-वफ़ात निज़ामी गंजवी
निज़ामी चू ईं दास्तान शुद तमाम
ब-अ’ज़्म-ए-शुदन तेज़ बर्दाश्त गाम
क़ाज़ी अहमद अख़्तर जूनागढ़ी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
कहाँ तक मैं अब फ़क़रो फ़ाक़ा सहूँ
नहीं मुज में बर्दाश्त ता चुप रहूँ
गुलामनबी हैदराबादी
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सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी कहानी
कहानी -9-बुढ़ापा- गुलिस्तान-ए-सा’दी
वो शख़्स जिस के ब-ग़ैर गुज़र नहीं हो सकती
अगर वो कोई ज़ुल्म करे तो उस को बर्दाश्त करना चाहिए
सादी शीराज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
के कुनद बर्दाश्त दरिया दर बयाबान-ए-ख़़िरद
नावदान-ए-बाम-ए-गुलख़न सैल-ए-रुद-ए-नील रा
हकीम सनाई
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बर्दाश्त पर्दः अज़ रुख़ व चूँ रोज़ अर्ज़ः कर्द
बर मन नमाज़-ए-सुब्ह ब-वक़्त-ए-नमाज़-ए-शाम