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ना'त-ओ-मनक़बत
आसमां का चाँद भी उतरा लिए कश्कोल हैघर पे बीबी आमना के नूर का माहौल है
महबूब गौहर इस्लामपुरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्फ़ उन की शाना-ए-हसरत पे यूँ बिखरी कि बसआज तक माहौल मेरे घर का है महका हुआ
डॉ. मंसूर फ़रिदी
मुख़म्मस
महफ़ूज़ रहे ईमाँ अपना माहौल-ए-ज़माना बदला हैज़र ले के ख़ुद्दारी बेची क्या ख़ूब ये सौदा सस्ता है
नाज़ाँ शोलापुरी
ग़ज़ल
ये दाग़-ए-मोहब्बत है जब तक तारीक नहीं माहौल मिराहर शब है शब-ए-मह मेरे लिए कोई भी शब-ए-दैजूर नहीं
कामिल शत्तारी
सूफ़ी लेख
Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
इंशाअल्लाह !(अगर खुदा ने चाहा !)- शेख़ ने जवाब दिया ।सुल्तान को यह जवाब नकारात्मक लगा
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
जब दिल्ली पर तैमूर का आक्रमण हुआ, उस समय पूरे देश में अराजकता का माहौल था.तुग़लक़