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रूबाई
चूँ रिज़्क़-ए-तु आँ चे अद्ल क़िस्मत फ़र्मूदयक ज़र्रः न कम शुद व न ख़्वाहद अफ़्ज़ूद
अ’ली इमाम ख़ान
सूफ़ी लेख
हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ - सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर
1. खाना शुरूअ’ करे तो बिस्मिल्लाह कहे2.तलब-ए-रिज़्क़ में ग़मगीन न रहे
मुनादी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
किसी को रिज़्क़ क़िस्मत से ज़्यादा मिल नहीं सकताख़ुदा ने नाम लिख रखा है सबका दाने दाने पर
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
अव़्वलः तौबा गुनाहों को खा जाती है।दोउमः झूट रिज़्क़ को चट कर जाती है।
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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मसनवी
बर अर्बाब-ए-ईमाँ कुशा बाब-ए-रिज़्क़कि मुफ़्लिस न मानिंद-ए-ईशाँ ज़े-सिद्क़
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
आग का रिज़्क़ है वो सोख़ता क़िस्मत भी 'नसीर'शम्-ए'-तस्वीर है जलते हुए परवाने की
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
चश्म-ए-नै की मुद्दतों गर्दिश तो पाया एक तिलरिज़्क़ इंसाँ को मुक़द्दर से सिवा मिलता नहीं
असीर लखनवी
ग़ज़ल
रिज़्क़ मिलता है दर-ए-हज़रत-ए-'साहिर' से 'रियाज़'जाम छलकाते हैं बैठे हुए मय-ख़ाने में
रियाज़ ख़ैराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
'हाफ़िज़' ब-हक्क़-ए-क़ुरआँ कज़ रिज़्क़-ओ-शीर बाज़ आबाशद कि गोए ऐ'शी दर ईं म्याँ तवाँ ज़द
हाफ़िज़
ग़ज़ल
तंगी-ए-रिज़्क़ की ना-हक़ है शिकायत ऐ दिलहै जो कुछ अपने मुक़द्दर का लिखा मिलता है