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ब्रजराज जी के दरसन को लगे लोभी नैन हमारे
ब्रजराज जी के दरसन को लगे लोभी नैन हमारे ।।ध्रु0।।पकर पूत के कर मो दो कर मो घर राखत, लय छरी डरावत
अमृत राय
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श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है ।।ध्रु0।।घन तरबर सुरतरु की छाया, कमल कर तक्त बिछाया
अमृत राय
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गनपत भावे हरिकथा रंग मो आवे
गनपत भावे हरिकथा रंग मो आवेपग सो नीचे मुख सो गावे चारे कर सो भाव बतावे
अमृत राय
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देखो रे देखो आया लंक का राजा
देखो रे देखो आया लंक का राजाकांचन की लंका तीन कोन सब काम सुनेरी रंगमहल
अमृत राय
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जमुना तट पुलिन ऊपर प्रभु खेले शाम विलासी
जमुना तट पुलिन ऊपर प्रभु खेले शाम विलासीसरत्कालको कार्तिक मास सुध्द पच्छ मो खेलत रास
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कृष्ण भक्ति संत काव्य
श्री बृन्दाबन मो अजपत ब्रजराज बिराजतसत्यलोक तें ब्रह्मदेव जब गोप भेख धर देखन आये
अमृत राय
कृष्ण भक्ति संत काव्य
इहलीला चंद रचाया पल में त्रैलोक्य नचायाउठ के प्रात जसोदा मय्या दे नवनीत पुत्रश्यामा
अमृत राय
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महाराज द्रौपदि के काज गरूडारूढ़ दुर दुर दौरे
महाराज द्रौपदी के काज गरूडारूढ़ दुर दुर दौरेकपटी काहा करे है मारे कप-टकर कर फांसे डारे
अमृत राय
पद
सब सो आदा मोरे सर साहेब ज़्यादः
सब सो आदा मोरे सर साहेब ज़्यादःजासे प्रकृति पुरुष नर-मादा पैदा हुवे कहत तह दादा
अमृत राय
पद
ब्रजमण्डल अमरत बरसै री
ब्रजमण्डल अमरत बरसै रीजसुदा नंद गोप गोपिन को मुख सुहाग उँमगै सरसै री
जुगल प्रिया
साखी
प्रेम का अंग - अमृत केरी मोटरी राखी सतगुरु छोरि
अमृत केरी मोटरी राखी सतगुरु छोरिआप सरीखा जो मिलै ताहि पिलावैं घोरि
कबीर
अरिल्ल
जासों अमृत होइ सु जुगति बताइये
जासों अमृत होइ सु जुगति बताइयेप्रथम चार अनुबंध तहाँ मन लाइये
स्वामी भगवानदास जी
दोहा
अमृत धारा ग्रंथ ये कहियौ वेद प्रमान
अमृत धारा ग्रंथ ये कहियौ वेद प्रमानअर्जुनदास प्रकासगुरु तत सेवग भगवान