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कलाम
कभी तार-ए-क़फ़स कटता नहीं शहबा-ए-हिज्राँ मेंनए जौहर हैं ऐ क़ातिल मिरी तेग़-ए-गरेबाँ में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
कलाम
है तीर-ए-निगह-ए-बज़्म-ए-अ'दू में मिरी जानिबग़ुस्से में छुपाया है मोहब्बत की नज़र को
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
दर-हक़ीक़त राज़-दार-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद हूँदेखने को हर क़दम पर ठोकरें खाता हूँ मैं
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
दर-हक़ीक़त राज़-दार-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद हूँदेखने को हर क़दम पर ठोकरें खाता हूँ मैं
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
अगर मंज़ूर है पीना मय-ए-वहदत के साग़र कालिया कर नाम हर दम हज़रत साक़ी-ए-कौसर का
ख़्वाजा ईलाही बख़्श मारूफ़
कलाम
क़स्र-ए-तन को यूँही बनवा ये बगूले 'नासिख़'ख़ूब ही नक़्शा-ए-ता’मीर लिए फिरते हैं