क्या पूछते हो मुझ से मिरे दिल की आरज़ू
अब मेरी हर ख़ुशी है तुम्हारी ख़ुशी के साथ
ख़ुशी से दूर हूँ ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-इ’शरत हूँ
सरापा दर्द हूँ वाबस्ता-ए-ज़ंजीर-क़िस्मत हूँ
तमन्ना दो दिलों की एक ही मा’लूम होती है
अब उन की हर ख़ुशी अपनी ख़ुशी मालूम होती है
हर-चंद फ़क़त मुख़्तार नहीं हर-चंद फ़क़त मजबूर नहीं
इक आह तो भर लूँ अपनी ख़ुशी इतना भी मुझे मक़्दूर नहीं
हम वस्ल में ऐसे खोए गए फ़ुर्क़त का ज़माना भूल गए
साहिल की ख़ुशी में मौजों का तूफ़ान उठाना भूल गए
है यही शर्त बंदगी के लिए
सर झुकाऊँ तेरी ख़ुशी के लिए
वो मुझ से मिलने को आए हैं मेरी मौत के बा'द
ख़ुशी भी मेरे लिए ग़म है क्या किया जाए
मैं जिया भी दुनिया में और जान भी दे दी
ये न खुल सका लेकिन आप की ख़ुशी क्या थी
दहर-ए-फ़ानी में हँसी कैसी ख़ुशी क्या चीज़ है
रोने आए थे यहाँ दो-चार दिन को रो गए
हसरत-ओ-अरमाँ का दिल से हर निशाँ जाता रहे
जिस में हो तेरी रज़ा मेरी ख़ुशी ऐसी तो हो
हुआ इ'श्क़ से ये हमें इस्तिफ़ादा मज़े में वही है जो है बे-इरादा
उन्हीं की ख़ुशी में मज़े-दारियाँ हैं नहीं तो बड़ा दुख उठाना पड़ेगा
ग़म-ए-जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ को
हँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी नहीं लगती
ख़ुशी है सब को रोज़-ए-ई’द की याँ
हुए हैं मिल के बाहम आश्ना ख़ुश
ई’द से भी कहीं बढ़ कर है ख़ुशी आ’लम में
जब से मशहूर हुई है ख़बर-ए-आमद-ए-यार
मिलने की है ख़ुशी तो बिछड़ने का है मलाल
दिल मुतमइन भी आप से है बे-क़रार भी
ख़ुशी है ज़ाहिद की वर्ना साक़ी ख़याल-ए-तौबा रहेगा कब तक
कि तेरा रिंद-ए-ख़राब 'अफ़्क़र' वली नहीं पारसा नहीं है
कहीं रौशनी कहीं तीरगी जो कहीं ख़ुशी तो कहीं ग़मी
तेरी बज़्म में हमें दख़्ल क्या तिरे एहतिमाम की बात है
नहीं देता जो मय अच्छा न दे तेरी ख़ुशी साक़ी
प्याले कुछ हमेशा ताक़ पर रखे नहीं रहते
वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'
कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
रात थोड़ी सी है बस जाने दे मिल हँस कर बोल
ना-ख़ुशी ता-ब-कुजा सुब्ह हुई जाती है
ख़ुशी से पाँव फैलाते हैं क्या क्या कुंज-ए-तुर्बत में
अजब लज़्ज़त है तिरे हाथ से क़ातिल शहादत में
बार-ए-अजल उठाए जो कोई ख़ुशी ख़ुशी
ताक़त ये किस में है तेरे बीमार के सिवा
बे-ख़ुदी गर हो ख़ुद तो आ के मिले
ऐ ख़ुदा बे-ख़ुदी अजब शय है
जब आग धदकती हो उस पर मत छीटियो तेल ख़ुदा रा तुम
क्या दिल की ख़ुशी को पूछो हो ऐ यारो इक नाशाद सती
ऐ’श-ओ-इश्रत वस्ल-ओ-राहत सब ख़ुशी में हैं शरीक
बे-कसी में आह कोई पूछने वाला नहीं
तिरे करम का सज़ा-वार तो नहीं 'हसरत'
अब आगे तेरी ख़ुशी है सरफ़राज़ करे
गरचे कैफ़ियत ख़ुशी में उस की होती है दो-चंद
पर क़यामत लुत्फ़ रखती है ये झुँझलाने की तरह
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता
हमारी तुर्बत पे तुम जो आना तो साथ अग़्यार को न लाना
ख़ुशी के सदमे हमें न देना हमारे ग़म की ख़ुशी न करना
किधर की ख़ुशी कहाँ की शादी
जब दिल से हवस ही सब उड़ा दी
मेरी ख़ुशी ख़ुशी नहीं मेरा अलम अलम नहीं
मुझ को हँसा गया कोई मुझ को रुला गया कोई
ख़ुशी से चोट खाने का मज़ा या कैफ़-ए-जाँ-सोज़ी
कोई जाँ-सोज़ परवाना या कोई दिल-जला जाने
ग़म-ए-जानाँ से दिल मानूस जब से हो गया मुझ को
हँसी अच्छी नहीं लगती ख़ुशी अच्छी नहीं लगती
ख़ुशी से ख़त्म कर ले सख़्तियाँ क़ैद-ए-फ़रंग अपनी
कि हम आज़ाद हैं बेगानः-ए-रंज-ए-दिल-आज़ारी
बद-मिज़ाजी ना-ख़ुशी आज़ुर्दगी किस वास्ते
गर बुरे हम हैं तो हो जिए और से जा आश्ना
तिरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी न हुई
वो ज़िंदगी तो मोहब्बत की ज़िंदगी न हुई
आग लगी वो इशक की सर से मैं पाँव तक जला
फ़र्त-ए-ख़ुशी से दिल मिरा कहने लगा जो हो सो हो
कुछ फ़िक्र तुम्हें उक़्बा की नहीं 'अहक़र' ये बड़ी नादानी है
दुनिया की ख़ुशी क्या ईज़ा क्या ये हादिस है वो फ़ानी है
ज़माना हेच है अपनी नज़र में
ज़माने की ख़ुशी क्या और ग़म क्या
शाद के नाम से हर रंज-ओ-ख़ुशी हो के 'रियाज़'
सद्र-ए-आ'ज़म को शब-ओ-रोज़ दुआ' देता है
ख़ुशी से वो हमारी हर ख़ुशी पामाल कर डालें
जहाँ तक है ख़ुशी उन की वहाँ तक है ख़ुशी अपनी
पहले तो ख़ून मेरा बहाया ख़ुशी ख़ुशी
फिर क्या वो ख़ुद ही सोचे कि पछता के रह गए
तेरे मिज़ाज में एक दिन भी बरहमी न हुई
ख़ुशी की बात थी लेकिन मुझे ख़ुशी न हुई
हिना की तरह अगर दस्तरस मुझे होती
तो किस ख़ुशी से तिरे पाँव में लगा करता
दिल में जिगर में आँखों में रहिए ख़ुशी से आप
फिर ये न कहियेगा कोई मिलता मकाँ नहीं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere