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बरकतुल्लाह पेमी

1660 - 1729 | एटा, भारत

ख़ानक़ाह बरकातिया, मारहरा के बानी और मा’रूफ़ सूफ़ी

ख़ानक़ाह बरकातिया, मारहरा के बानी और मा’रूफ़ सूफ़ी

बरकतुल्लाह पेमी

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दोहा 28

तू मैं मैं तू एक हैं और दूजा कोय

मैं तो कहना जब छुटे वही वही सब होय

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मन भटको चहुँ ओर तें आयो सरन तिहार

करुना कर के नाँव की करिए लाज मुरार

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लिखें सबई लीखें नहीं मोहन प्रान सहाय

अलख लखै कउ लाख मूँ लिखा लखा तो काय

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तन निर्मल कर बूझिए मन की अधिकै सीख

वहोवा मअ'कुम के भेद सों फिर फिर आपै देख

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तुम जानी कछु 'पेम' मग बातन बातन जाय

पंथ मीत को कठिन है खेलो फाग बनाय

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कवित्त 1

 

फ़ारसी सूफ़ी काव्य 1

 

रेख़्ता 4

 

बैत 3

 

ना'त-ओ-मनक़बत 2

 

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