बरकतुल्लाह पेमी के दोहे
तू मैं मैं तू एक हैं और न दूजा कोय
मैं तो कहना जब छुटे वही वही सब होय
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लिखें सबई लीखें नहीं मोहन प्रान सहाय
अलख लखै कउ लाख मूँ लिखा लखा तो काय
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मन भटको चहुँ ओर तें आयो सरन तिहार
करुना कर के नाँव की करिए लाज मुरार
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बीज बिरछ नहिं दोय हैं रूई चीर नहीं दोय
दध तरंग नहीं दोय हैं बूझो ज्ञानी लोय
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मन जोगी तन कि मढ़ी सेत गूदरि ध्यान
नैनाँ जल बिरह धोएँ बिच्छा दरसन जान
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मैंय्यहदिल्लाहो कों फ़ला-मुज़िल्ला-लहु कोय
निहचयँ के मन जानियो और न दूजा कोय
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सत जो जाए तो रहै क्या नीती गए सब जाए
लजिया बिना निलज्ज है बिन बिद्या न अघाय
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तुम जानी कछु 'पेम' मग बातन बातन जाय
पंथ मीत को कठिन है खेलो फाग बनाय
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तन निर्मल कर बूझिए मन की अधिकै सीख
वहोवा मअ'कुम के भेद सों फिर फिर आपै देख
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दधि-मन देत तरंग नित रंग रंग बिस्तार
कोउ तरंग मोती सहित काहु संग सेवार
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योमिनूना बिल-ग़ैब कूँ आँख मूँद मन पील
सीखो गुरु सों ये जुगत आँख-मिचौनी खेल
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अलख लखे जब आप कों लखे न राखे मोह
लिखें पढ़ें कछु होत नहिं कहे तो लिख देवँ तोह
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'पेमी' तन के नगर में जो मन पहरा देय
सोवे सदा अनंद सों चोर न माया होय
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बे-हद की हद मीम सों भई 'पेम' मद होय
बिला मीम अहमद कहै औ काकी हद होय
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अबि-बकर और उमर पुन उस्मान अ'ली बखान
सत नेति और लाज अती बिद्या बूझ सुजान
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मैय्युज़-लील्हो जु हर भयो पाप की मोट
फला-हादीया-लहु होय नहिं करो जतन किन कोट
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गत तिहारी अधिक है मो मत सके न गाए
ज्यों कतान सम चंद के टूक-टूक हो जाए
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'पेमी' हिन्दू तुरक मों हर-रंग रहो समाय
देवल और मसीत मों दीप एक हीं भाय
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नई रीति या पीत की पहलें सब सुख देह
पाछैं दुख की जील में डार करै तन खेह
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पाँचौ पाँचौ पाँचियो नबी चार हू नांह
बाचोगे दुख पाप तें नाँचो बैकुंठ माँह
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औरंगजेब के राज में भई ग्रंथ की आस
'पेमी' नाँव बिचार के धरा पेम-प्रकाश
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मूरख लोग न बूझि हैं धरम-करम की छीन
एक तो चाहैं अधिक कै इक तो देखें हीन
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मुख सुख को ससि निरमलो होत पाप तम दूर
ध्यान धरें अति पाइए 'पेमी' मन की मूर
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हरिजन हरि के पंथ जिय ऐसें देत मिलोय
निधरक लोभै छाड़ के जम-सुध ही ना होय
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तोहिं तोहिं तब कहै हौंहीं हौंहीं जाय
जल गंगा में मिल गयो सिर की गई बलाय
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तालकल्ल दोउ कहै ब्योरा बूझो कोय
इक बक़ा एक फ़ना है 'पेम' पुराने लोय
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हम बासी वा देस के जहाँ न पाप न पुन्न
बिदिसा दिसा न होत है 'पेमी' सनै सुन्न
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पार कहैं तै वार हैं वार कहैं नहीं पार
या मग आर-न-पार है तन-मन डारो वार
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere