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इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

1839 - 1901 | हैदराबाद, भारत

हैदराबाद के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि

हैदराबाद के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

ग़ज़ल 2

 

शे'र 13

कलाम 33

फ़ारसी कलाम 2

 

ना'त-ओ-मनक़बत 11

मुख़म्मस 2

 

वीडियो 18

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ऐ यार न मुझ से मुँह को छुपा तू और नहीं मैं और नहीं

आबिदा परवीन

कहें किस से कि उन आँखों से क्या क्या हम ने देखा है

अज्ञात

ग़ुबार-ए-कूचा-ए-मिर्ज़ा हूँ नक़्श-ए-आब नहीं

अज्ञात

जहाँ सर झुकाया दर-ए-यार पाया

अज्ञात

तुम्हारे हुस्न की ये शान मिर्ज़ा

अज्ञात

तिरा दर छोड़ कर जाएँ तो अब जाएँ कहाँ मिर्ज़ा

अज्ञात

नहीं मुम्किन हर इक के दिल में नक़्श-ए-यार हो पैदा

अज्ञात

पेश-ए-हक़ कुछ तिरा नमूना रहे

अज्ञात

मरीज़-ए-दिल की शिफ़ा ला-इलाहा इल-लल्लाह

अज्ञात

मिर्ज़ा जी मिर्ज़ाई कर गए

अज्ञात

यार अग़्यार में नज़र आया

अज्ञात

वही जल्वा-नुमा है मैं नहीं हूँ

अज्ञात

सरापा नक़्शा-ए-दिलदार हूँ मैं

अज्ञात

कर ग़ौर ज़रा दिल में कुछ जल्वागरी होगी

परवेज़ और मिस्कीन हुसैन क़व्वाल

ख़िरद-मंदों को दीवाना बनाया

गर यार हो बहम कोई हो हो न हो न हो

परवेज़ और मिस्कीन हुसैन क़व्वाल

जल्वा-ए-मा’बूद है सरदार बेग

मह्बूब ख़ान क़व्वाल

यार काँ काँ न फिरा दह्र में क्या-क्या बन कर

परवेज़ और मिस्कीन हुसैन क़व्वाल

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