Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
noImage

अहमद शाहजहाँपुरी

1831 - 1911 | शाहजहाँपुर, भारत

तौहीद-ओ-तसव्वुफ़ के शाइ’र

तौहीद-ओ-तसव्वुफ़ के शाइ’र

अहमद शाहजहाँपुरी का परिचय

उपनाम : 'अहमद'

मूल नाम : मोहम्मद हुसैन ख़ाँ

जन्म :शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश

निधन : उत्तर प्रदेश, भारत

 

हाजी मियाँ और अहमद शाहजहाँपुरी के नाम से मा’रूफ़ थे|उनका अस्ल नाम अहमद हुसैन ख़ाँ था। चूँकि शाह-जहाँपुर उत्तरप्रदेश से उनका तअ’ल्लुक़ था इस वजह से उनके नाम के साथ शाहजहाँपुरी लगा हुआ है। 1246 हिज्री मुवाफ़िक़ 1831 ई’स्वी में शाहजहाँपुर में उनकी विलादत जुमआ’ के रोज़ हुई। ता’लीम-ए-अबजद और इब्तिदाई ता’लीम घर पर ही अपने हम-ख़ाना से हासिल की। तसव्वुफ़-ओ-फ़क़्र से उनको फ़ितरी ज़ौक़ था इसलिए ता’लीम-ओ-तअ’ल्लुम हासिल करने के बा’द सूफ़िया की हम-नशीनी इख़्तियार की और उस दौर के सूफ़ी-ए- बा-सफ़ा मौलाना ग़ुलाम इमाम ख़ाँ से बैअ’त हासिल की। ग़ुलाम इमाम ख़ाँ ने उन्हें ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त इ’नायत किया और जहान-ए- सूफ़ी के चारों सिलसिलों मैं बैअ’त लेने की इजाज़त मर्हमत फ़रमाई। सियाहत का शौक़ था | इब्तिदाई उ’म्र में कश्मीर-ओ-नेपाल तक पियादा तशरीफ़ ले गए और हज्ज-ए-बैतुल्लाह-ओ-ज़ियरत-ए-मदीना मुनव्वरा से भी मुशर्रफ़ हुए| और मशाहीर औलिया की ज़ियारत से फ़ैज़-याब होने के बा’द उ’म्र के आख़िर हिस्सा में गोशा-नशीनी इख़्तियार की। गोशा-नशीनी इख़्तियार करने के बा’द सिर्फ़ उ’र्स-ए-ख़्वाज-गान और ख़ानक़ाहों में वज़ीफ़ा की ख़ातिर बाहर निकलते और फिर अपने गोशा-नशीनी के मक़ाम पर दोबार मौजूद होते। उ’म्र के आख़िर अय्याम में ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त अपने भाई मुहम्मद ताहिर हुसैन ख़ाँ को अ’ता फ़रमाया। हमेशा सेहत-ओ-तंदरुस्त रहने वाले अहमद हुसैन ख़ाँ को पंजा-ए-क़ज़ा ने बिल-आख़िर अपनी गिरफ़्त में लेना शुरूअ’ कर दिया और फ़ालिज से दो-चार हुए और ये उनकी वफ़ात की वजह बना | बिल-आख़िर 16 ज़िल-हिजा 1329 हिज्री मुताबिक़ 1911 ई’स्वी में रेहलत फ़रमाई | वो दिन भी जुमआ’ का दिन था| शाहजहाँपुर की अपनी ख़ानक़ाह में मद्फ़ून हुए। आप इ’बादत-ओ-ता’लीम-ओ-तल्क़ीन-ए-मुरीदीन ही में मसरूफ़ रहते थे। तबीअ’त में इन्किसारी और तवाज़ोअ’ बहुत था| अश्आ’र भी मौज़ूँ करते रहते थे लेकिन यह कहते कि मैं शाइ’र नहीं हूँ| फ़न्न-ए-शे’र से मुझे आगाही नहीं है सिर्फ़ दिली जज़्बात का इज़हार कर लिया करता हूँ। हक़ीक़त भी यही है कि उनको रस्मी क़ील-ओ-क़ाल से ज़्यादा रग़बत न थी। इस लिहाज़ से उनके महल-ए-मक़सूद का कुंगरा निहायत ही बुलंद है। उनका कलाम तौहीद-ओ-तसव्वुफ़ का एक बे-बहा बह्र-ए-ज़ख़्ख़ार है| इस में दिली जज़्बात का चेहरा साफ़ नज़र आता है। फ़ारसी और उर्दू दोनों ज़बान पर उनको उ’बूर हासिल था लेकिन फ़ारसी में शे’र कहना ज़्यादा पसंद करते थे| बा’ज़ मुरीदीन की फ़र्माइश पर उनकी हौसला-अफ़ज़ाई के लिए उर्दू में भी शे’र मौज़ूँ कर लिया करते थे।

 


संबंधित टैग

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए