अहमद के दोहे
'अहमद' नग नहि खोलिये या कलि खोटे हाट।
चुपकि मुटरियां बांधिये, गहिये अपनी बाट।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
गुपुत प्रकट संसार मधि जो कछु बिधना कीन।
अगम अगोचर गुन प्रकट रोम रोम कहि दीन।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
'अहमद' लड़का पढ़न में कहु किन झोका खाय।
तन घट बह विद्या रतन भरत हिलाय हिलाय।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
गमन समय पटुका गह्यो, छाड़हुँ कह्यो सुजान।
प्रान पियारे प्रथम की पटुका तजौं कि प्रान।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
गुन चाहत औगुन तजत, जगत बिदित ये अङ्क।
ज्यों पूरन ससि देखि के, सब कोऊ कहत कलंक।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
करै जु करम अनेक ना बहै करम की रेह।
किये विधाता गुन प्रकट रोम रोम सब देह।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
लिख्यो जु करम लिलाट विधि रोम रोम सब ठौर।
सुख दुख जीवन मरन को करे जुगुन कछु और।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
प्रीतम नहीं बजार में, वहै बजार उजार।
प्रीतम मिलै उजार में, वहै उजार बजार।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मन में राखो मन जरै, कहौ तौ मुख जरि जाव।
अहमद' बातन बिरह की, कठिन परी दुहुँ भाय।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
'अहमद' अपने चोर को, सब कोउ कहे हनेउ।
मो मन हरन जु मों मिलै, बार फेर जिव देउ।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कहि 'अहमद' कैसे बने, अनभावठ को संग।
दीपक के मन में नही, जरि जरि मरै पतंग।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कहा करौं बैकुण्ठ लै, कल्प वृक्ष की छाँह।
'अहमद' ढांक सुहावने, जहं प्रीतम गलबाँह।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
'अहमद' अपने चोर को सब कोउ डारत मार।
चोर मिलै मो चित्त को तन मन डारौ बार।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अंजलि समुद उलीचिते, नख सों कटे सुमेर।
काहू हाथ न आवई, काल करम को फेर।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
नर बिन नारि न सोहिए नारी बिन नर हीन।
जैसे ससि बिन निसि अवर, निसि बिन चंद मलीन।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
'अहमद' या मन सदन में, हरि आवे केहि वाट।
बिकट जुरे जौ लौ निपट, खुले न कपट कपाट।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अहमद' गति अवतार की, कहत सबै संसार।
बिछुरे मानुष फिर मिलै, यहै जान अवतार।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
प्रेम जुवा के खेल में 'अहमद' उल्टी रीति।
जीते ही को हारिबो, हारे ही की जीति।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कहि आवत सोई यथा, चुभी जो हित-चित मांहि।
अहमद' घायल नरन को, बेकलाइ फल नाहि।।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere