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'अहमद' नग नहि खोलिये या कलि खोटे हाट।
चुपकि मुटरियां बांधिये, गहिये अपनी बाट।।
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गुपुत प्रकट संसार मधि जो कछु बिधना कीन।
अगम अगोचर गुन प्रकट रोम रोम कहि दीन।।
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'अहमद' लड़का पढ़न में कहु किन झोका खाय।
तन घट बह विद्या रतन भरत हिलाय हिलाय।।
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गुन चाहत औगुन तजत, जगत बिदित ये अङ्क।
ज्यों पूरन ससि देखि के, सब कोऊ कहत कलंक।।
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करै जु करम अनेक ना बहै करम की रेह।
किये विधाता गुन प्रकट रोम रोम सब देह।।
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लिख्यो जु करम लिलाट विधि रोम रोम सब ठौर।
सुख दुख जीवन मरन को करे जुगुन कछु और।।
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प्रीतम नहीं बजार में, वहै बजार उजार।
प्रीतम मिलै उजार में, वहै उजार बजार।।
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'अहमद' अपने चोर को, सब कोउ कहे हनेउ।
मो मन हरन जु मों मिलै, बार फेर जिव देउ।।
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कहा करौं बैकुण्ठ लै, कल्प वृक्ष की छाँह।
'अहमद' ढांक सुहावने, जहं प्रीतम गलबाँह।।
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'अहमद' अपने चोर को सब कोउ डारत मार।
चोर मिलै मो चित्त को तन मन डारौ बार।।
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अंजलि समुद उलीचिते, नख सों कटे सुमेर।
काहू हाथ न आवई, काल करम को फेर।।
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नर बिन नारि न सोहिए नारी बिन नर हीन।
जैसे ससि बिन निसि अवर, निसि बिन चंद मलीन।।
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'अहमद' या मन सदन में, हरि आवे केहि वाट।
बिकट जुरे जौ लौ निपट, खुले न कपट कपाट।।
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प्रेम जुवा के खेल में 'अहमद' उल्टी रीति।
जीते ही को हारिबो, हारे ही की जीति।।
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