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अमीर मीनाई

1829 - 1900 | रामपुर, भारत

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

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अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

मुबारक अली

मेहदी हसन ख़ान

सय्यद ज़बीब मास'उद

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

आँसू मिरी आँखों में नहीं आए हुए हैं

आँसू मिरी आँखों में नहीं आए हुए हैं अज्ञात

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो हाजी महबूब अ'ली

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ अज्ञात

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ अज्ञात

ख़लक़ के सरवर शाफ़ा-ए-महशर सल्लल्लाहो अलैहे-वसल्लम

ख़लक़ के सरवर शाफ़ा-ए-महशर सल्लल्लाहो अलैहे-वसल्लम अज्ञात

गुज़श्ता ख़ाक-नशीनों की यादगार हूँ मैं

गुज़श्ता ख़ाक-नशीनों की यादगार हूँ मैं मुबारक अली

तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल

तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल अज्ञात

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है अज्ञात

न शौक़-ए-वस्ल का मौक़ा न ज़ौक़-ए-आश्नाई का

न शौक़-ए-वस्ल का मौक़ा न ज़ौक़-ए-आश्नाई का मोहम्मद रफ़ी

हम लोटते हैं वो सो रहे हैं

हम लोटते हैं वो सो रहे हैं अज्ञात

हल्क़े में रसूलों के वो माह-ए-मदनी है

हल्क़े में रसूलों के वो माह-ए-मदनी है अज्ञात

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