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अमीर मीनाई

1829 - 1900 | रामपुर, भारत

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

अमीर मीनाई

ग़ज़ल 18

शे'र 27

कलाम 86

रूबाई 12

बैत 1

 

ना'त-ओ-मनक़बत 18

क़िता' 3

 

पुस्तकें 2

 

वीडियो 14

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उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

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उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

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ख़लक़ के सरवर शाफ़ा-ए-महशर सल्लल्लाहो अलैहे-वसल्लम

अज्ञात

तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल

अज्ञात

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

अज्ञात

न शौक़-ए-वस्ल का मौक़ा न ज़ौक़-ए-आश्नाई का

मोहम्मद रफ़ी

हम लोटते हैं वो सो रहे हैं

अज्ञात

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