Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
Aziz Safipuri's Photo'

अज़ीज़ सफ़ीपुरी

1843 - 1928 | उन्नाव, भारत

मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र-ओ-अदीब

मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र-ओ-अदीब

अज़ीज़ सफ़ीपुरी का परिचय

उपनाम : 'अज़ीज़'

मूल नाम : विलायत अली ख़ाँ

जन्म :उन्नाव, उत्तर प्रदेश

निधन : उत्तर प्रदेश, भारत

संबंधी : मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी (मुरीद)

 

अ’ज़ीज़ सफ़ीपुरी के नाम से मा’रूफ़ थे। उनका अस्ल नाम विलायत अ’ली ख़ाँ था और अ’ज़ीज़ तख़ल्लुस था। सफ़ीपुर ज़िला' उन्नाव में सन 1843 ई’स्वी में पैदा हुए। सिलसिला-ए-नसब ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी तक पहुँचता है जो ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती के पीर-ओ-मुर्शिद थे| अ’ज़ीज़ सफ़ीपुरी के आबा-ओ-अज्दाद नव्वाबान-ए-अवध के दरबार से मुंसलिक थे।उनके परदादा से लेकर उनके वालिद मुंशी यहया अ’ली ख़ाँ अवध के नव्वाबान के दरबार में मुलाज़मत-पेशा रहे और मुंशी के दीगर ओ’हदों पर अपनी ख़िदमात अंजाम देते रहे। वाजिद अ’ली शाह के अ’हद तक ये ख़ानदान मुलाज़मत-ए-शाही में रहा और इसी सिलसिला-ए-मुलाज़मत में अ’ज़ीज़ सफ़ीपुरी भी 15 साल की उ’म्र तक लखनऊ में सुकूनत-पज़ीर रहे।1857 ई’स्वी के ग़दर के हंगामा के असर से लखनऊ छोड़ कर अपने ननिहाल सफ़ीपुर चले गए।सिर्फ़ सात रुपया आठ आना के सरकारी वज़ीफ़ा पर अपनी सारी उ’म्र क़िनाअ’त-ओ-तवक्कुल के साथ गुज़ारी।1928 ई’स्वी में विसाल फ़रमाया। इब्तिदाई उ’म्र से ही सूफ़ियों और आ’लिमों की सोहबत के शौक़ीन होने के बाइ’स तसव्वुफ़ की दौलत से माला-माल हुए।उर्दू अदब के नशो-ओ-नुमा में अ’ज़ीज़ सफ़ीपुरी का अहम मक़ाम है। डॉक्टर अ’ब्दुल हक़ ने अपनी मशहूर तसनीफ़ “उर्दू की इब्तिदाई नशो-ओ-नुमा में सूफ़िया-ए-किराम का हिस्सा” में लिखा है। अ’ज़ीज़ सफ़ीपुरी के ज़ौक़-ए-शाइ’राना का अंदाज़ा उनके मकातीब से लगाया जा सकता है जो मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’, मौलाना ‘हाली’, शिब्ली नो’मानी, अमीर मीनाई और दूसरे मशाहीर शो’रा ने उनको लिखे हैं और जिनमें उनकी उस्तादी और फ़न का ऐ’तराफ़ किया है। ‘ग़ालिब’ ने उनकी फ़ारसी नस्र-ओ-नज़्म के हवाले से एक मक्तूब तहरीर किया है| “इस्लाह से बा-लातर हैं और उसकी तशरीह कर दी है कि उस में ख़ुशामद या ता’रीफ़ का शाइबा नहीं है”। इसलिए ये यक़ीनी है कि ‘अ’ज़ीज़’ सफ़ीपुरी के कलाम महज़ बरा-ए-शे’र गुफ़्तन या क़ाफ़िया-पैमाई के लिए नहीं हैं बल्कि उनकी कैफ़ियात और जज़्बात के तर्जुमान हैं। आपके उर्दू दवावीन नूर-ए-विलादत और नूर-ए-तजल्ली तब्अ’ हो चुके हैं। इसके अ’लावा फ़ारसी नज़्म-ओ-नस्र का मजमूआ’ कम-ओ-बेश चालीस तसानीफ़ पर मुश्तमिल है।

 


संबंधित टैग

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए