Font by Mehr Nastaliq Web
Aziz Safipuri's Photo'

अज़ीज़ सफ़ीपुरी

1843 - 1928 | उन्नाव, भारत

मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र-ओ-अदीब

मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र-ओ-अदीब

अज़ीज़ सफ़ीपुरी के अशआर

श्रेणीबद्ध करें

मुझे इ’श्क़ ने ये पता दिया कि हिज्र है विसाल है

उसी ज़ात का मैं ज़ुहूर हूँ ये जमाल उसी का जमाल है

अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जाना

निहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता

मैं फ़िदा-ए-मुर्शिद-ए-पाक हूँ दर-ए-बारगाह की ख़ाक हूँ

वो समा के मुझ में ये कहते हैं कि 'अज़ीज़' ग़ैर-मुहाल है

आग़ाज़ तू है अंजाम तू है ईमान तू ही इस्लाम तू है

है तुझ पे 'अज़ीज़'-ए-ख़स्ता फ़िदा नूर-ए-मुहम्मद सल्लल्लाह

पूछो बे-नियाज़ी आह तर्ज़-ए-इम्तिहाँ देखो

मिलाई ख़ाक में हँस हँस के मेरी आबरू बरसों

कोई है मोमिन कोई है तरसा ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने

अजब तरह का है ये तमाशः ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने

बस वही पाता है ऐ’श-ए-ज़िंदगी

जिस को ग़म में मुब्तला करता है इ'श्क़

सिखाई नाज़ ने क़ातिल को बेदर्दी की ख़ू बरसों

रही बेताब सीना में हमारी आरज़ू बरसों

वस्ल ऐ’न दूरी है बे-ख़ुदी ज़रूरी है

कुछ भी कह नहीं सकता माजरा जुदाई का

कोई क्या समझे कि क्या करता है इ’श्क़

हर दम इक फ़ित्नः बपा करता है इ’श्क़

इ'श्क़ रा बा-हुस्न यकजा कर्द:अन्द

तुर्फ़ः-सामाने मुहय्या कर्द:अन्द

वस्ल ऐन दूरी है बे-ख़ुदी ज़रूरी है

कुछ भी कह नहीं सकता माजरा जुदाई का

सिखाई नाज़ ने क़ातिल को बेदर्दी की ख़ू बरसों

रही बेताब सीनः में हमारी आरज़ू बरसों

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

बोलिए