महात्मा चरणदास जी की शिष्या और सहजोबाई की गुरु बहन थीं। मेवात के डेहरा नामक गाँव में जन्म। विक्रमी संवत् 1750 और 1775 के बीच इनका प्रकट होना पाया जाता है और संवत् 1818 में इन्होंने अपना पहला ग्रंथ- दयाबोध लिखा। इनकी एक और किताब 'विनय मालिका' मिलती है।