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दया बाई

डेहरा, भारत

दया बाई के दोहे

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गिरिधर गोबिन्द गोपधर गरुड़ध्वज गोपाल

गोबरधन श्रीगदाधर गज-तारन ग्रह-साल

बंदो श्री सुकदेव जी सब बिधि करो सहाय

हरो सकल जग आपदा प्रेम-सुधा रस प्याय

'दया' प्रेम उनमत्त जे तन की तनि सुधि नाहिं

झुके रहैं हरि रस छके थके नेम ब्रत नाहिं

तात मात तुम्हरे गये तुम भी भये तयार

आज काल्ह में तुम चलौ 'दया' होहु हुसियार

निःकलंक नरसिंध जू निरंजन अलख अभेव

निराकार निरभय मगन नारायण नित-देव

देह धरौं संसार में तेरो कहि सब कोय

हाँसी होय तौ तेरिही मेरी कछू होय

लाख चूक सुत से परै सो कछु तजि नहिं देह

पोष चुचुक ले गोद में दिन दिन दूनों नेह

भवजल नदी भयावनी किस बिधि उतरूँ पार

साहिब मेरी अरज है सुनिए बारम्बार

'दया' नाव हरि नाम की सतगुरु खेवनहार

साधू जन के संग मिलि तिरत लागै बार

पूजा अरचन बंदगी नहिं सुमिरन नहिं ध्यान

प्रभुजी अब राखे बने बिर्द बाने की कान

कब को टेरत दीन भो सुनौ नाथ पुकार

की सरवन ऊँचौ सुनो की बिर्द दियो बिसार

नहिं संजम नहिं साधना नहिं तीरथ ब्रत दान

मात भरोसे रहत है ज्यों बालक नादान

ठग पापी कपटी कुटिल ये लच्छन मोहिं माहिं

जैसो तैसो तेर ही अरु काहू को नाहिं

हाथी बूड़ो सूंड लों जब हीं करी पुकार

ग्राहतें आन छुड़ाइया लगी रंचक बार

बेर बेर चूकत गयों दीजै गुसा बिसार

मिहरबान होइ रावरे मेरी ओर निहार

हौं अनाथ तोहिं बिनय करि भय सों करूँ पुकार

'दयादास' तन हरे प्रभु अब के पार उतार

किस बिधि रीझत हौ प्रभू का कहि टेरूँ नाथ

लहर मेहर जब हीं करो तब हीं होउँ सनाथ

जैसे सूरज के उदय सकल तिमिर नस जाय

मेहर तुम्हारी हे प्रभु क्यूँ अज्ञान रहाय

कर्म रूप दरियाव से लीजै मोहिं बचाय

चरन कमल तर राखिये मेहर जहाज चढ़ाय

विनय मलिका - भयमोचन अरू सर्बमय ब्यापक अचल अखंड

दयासिंधु भगवानजू ताकै सिव ब्रह्मंड

भाई बंधु कुटुम्ब सब भये इकट्ठे आय

दिना पाँच को खेल है 'दया' काल ग्रसि जाय

दया दीन पर करत हो सो किमि लेखी जाहि

बेद बिरद बोलत फिरै तीन लोक के माहिं

टेर सुनी प्रहलाद की नरसिंह हो बनि आय

हिरनाकुस को मारि कै जन को लीन बचाय

जो नहिं अधम उधारनो तौ नहिं गहते फेंट

बिर्द की पैज सम्हारि लो सकल चूक को मेट

जो मेरे करमन लखो तौ नहिं होत उबार

'दयादास' पर दया करि दीजै चूक बिसार

जगत सनेही जीव है राम सनेही साध

तन मन धन तजि हरि भजैं जिनका मता अगाध

सकल मेघ लै इन्द्र जब ब्रज पै बरसो आय

गोबरधन नख पै धरो सब ब्रज लियो बचाय

जैसो मोती ओस का तैसो ये संसार

बिनसि जाय छिन एक में 'दया' प्रभू उर धार

पैरत थाको हे प्रभू सूझत वार पार

मेहर मौज जब हीं करो तब पाऊँ दरबार

कछू दोष तुम्हरो नहीं हमरी है तकसीर

बीचहिं बीच बिबस भयो पाँच पचीस के भीर

अनंत भानु तुम्हरी मेहर कृपा करो जब होय

'दयादास' सूझै अगम दिब्य दृष्टि तन होय

और नज़र आवै नहीं रंक राव का साह

चिरहटा के पँख ज्यों थोथो काम देखाह

चरनदास गुरुदेव ने कीन्ही कृपा अपार

'दया' कुँवर पर दया करि दियो ज्ञान निज सार

हौं गरीब सुन गोबिंदा तुही गरीब-निवाज

'दयादास' आधीन के सदा सुधारन काज

जेते करम हैं पाप के मोसे बचे एक

मेरी ओर लखो कहा बिर्द बानो तन देख

लोहा पारस के निकट कंचन ही सो होय

जितना चाहै लै करै लोहा कहै कोय

दुख तजि सुख की चाह नहिं नहिं बैकुंठ बेवान

चरन कमल चित चहत हौं मोहिं तुम्हारी आन

असु गज अरु कंचन 'दया' जोरे लाख करोर

हाथ झाड़ रीते गये भयो काल को जोर

स्याम घटा घन देखि कै बोलत गहगह मोर

ब्रजबासी तिमि जी उठैं चितवत हरि की ओर

चित चातृक रटना लगी स्वाँती बूँद की आस

दया-सिध भगवान जू पुजवौ अब की आस

'दयाकुँवर' या जक्त में नहीं आपनो कोय

स्वारथ-बंधी जीव है राम नाम चित जोय

सीस नवै तौ तुमहिं कूँ तुमहिं सुँ भाखूँ दीन

जो झगरौं तौ तुमहिं सूँ तुम चरनन आधीन

तुम ठाकुर त्रैलोक-पति, ये ठग बस करि देहु

'दयादास' आधीन की ये बिनती सुनि लेहु

छाँड़ो बिषै बिकार कूँ राम नाम चित लाव

'दयाकुँवर' या जगत में ऐसो काल बताव

काहू बल अप देह को काहू राजहि मान

मोहिं भरोसो तेरही दीनबंधु भगवान

धूप हरै छाया करै भोजन को फल देत

सरनाये की करत है सब काहू पर हेत

कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय

'दयादास' तातें लई सरन तिहारी आय

'दया' सुपन संसार में ना पचि मरिये बीर

बहुतक दिन बीते बृथा भजिये रघुबीर

सीतापति समरत्थ जू साहब सालिगराम

सेस साइँ सहजहि सबल सिंध-मथन श्री श्याम

रावन कुम्भकरन गये दुरजोधन बलवंत

मार लिये सब काल ने ऐसे 'दया' कहंत

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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