दया बाई के दोहे
बंदो श्री सुकदेव जी सब बिधि करो सहाय
हरो सकल जग आपदा प्रेम-सुधा रस प्याय
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दया दान अरु दीनता दीना-नाथ दयाल
हिरदै सीतल दृष्टि सम निरखत करैं निहाल
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गिरिधर गोबिन्द गोपधर गरुड़ध्वज गोपाल
गोबरधन श्रीगदाधर गज-तारन ग्रह-साल
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चित चातृक रटना लगी स्वाँती बूँद की आस
दया-सिध भगवान जू पुजवौ अब की आस
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'दयाकुँवर' या जक्त में नहीं आपनो कोय
स्वारथ-बंधी जीव है राम नाम चित जोय
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सीस नवै तौ तुमहिं कूँ तुमहिं सुँ भाखूँ दीन
जो झगरौं तौ तुमहिं सूँ तुम चरनन आधीन
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तुम ठाकुर त्रैलोक-पति, ये ठग बस करि देहु
'दयादास' आधीन की ये बिनती सुनि लेहु
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छाँड़ो बिषै बिकार कूँ राम नाम चित लाव
'दयाकुँवर' या जगत में ऐसो काल बताव
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काहू बल अप देह को काहू राजहि मान
मोहिं भरोसो तेरही दीनबंधु भगवान
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धूप हरै छाया करै भोजन को फल देत
सरनाये की करत है सब काहू पर हेत
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कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय
'दयादास' तातें लई सरन तिहारी आय
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'दया' सुपन संसार में ना पचि मरिये बीर
बहुतक दिन बीते बृथा ब भजिये रघुबीर
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सीतापति समरत्थ जू साहब सालिगराम
सेस साइँ सहजहि सबल सिंध-मथन श्री श्याम
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रावन कुम्भकरन गये दुरजोधन बलवंत
मार लिये सब काल ने ऐसे 'दया' कहंत
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अजर अमर अबिगत अमित अनुभय अलख अभेव
अबिनासी आनन्दमय अभय सो आनंद देव
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तीन लोक नौ खंड के लिए जीव सब हेर
'दया' काल प्रचण्ड है मारै सब कूँ घेर
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ब्रह्म बिसंभर बासुदेव बिस्वरूप बलबीर
ब्यास बोध बाधाहरन ब्यापक सकल सरीर
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नर देही दीन्हीं जबै कीन्हो कोटि करार
भक्ति कबूली आदि में जब में भयो लबार
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बड़े बड़े पापी अधम तारत लगी न बार
पूँजी लगै कछु नंद की हे प्रभू हमरी बार
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तेरी दिस आसा लगी भ्रमत फिरौं सब दीप
स्वाँती मिलै सनाथ हो जैसे चातृक सीप
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हौं पाँवर तुम हौ प्रभू अधम-उधारन ईस
'दयादास' पर दया हो दयासिंधु जगदीस
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चकई कल में होत है भान उदय आनंद
'दयादास' के दृगन तें पल न टरो ब्रज-चंद
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कायर कँपै देख करि साधू को संग्राम
सीस उतारै भुइँ धरै जब पावै निज ठाम
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तन मद धन मद राज मद अंत काल मिटि जाय
जिन के मद तेरो प्रभू तेहिं जम काल डेराय
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असंख जीव तरि तरि गये लै लै तुम्हरो नाम
अब की बेरी बाप जी परो मुगध से काम
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ईसुर ईस अगोचरा अंतरजामी नाथ
ठाकुर श्रीहरि द्वारिका दासन करन सनाथ
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अधम उधारन बिरद सुन निडर रह्यों मन माँहिं
बिर्द बानो की हार देव की तारो गहि बाँहिं
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सदन कसाई देखि कै को नहिं देत बड़ाइ
बड़े बिरछ की छाँह में को नहिं बिलमत आइ
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चौरासी चरखान को दुःख सहो नहिं जाय
'दयादास' तातें लई सरन तिहारी आय
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काम क्रोध मद लोभ नहिं खट बिकार करि हीन
पंथ कुपंथ न जानहीं ब्रह्म भाव रस लीन
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निरपच्छी के पच्छ तुम निराधार के धार
मेरे तुम हीं नाथ इक जीवन प्रान अधार
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हौ अनाथ के नाथ तुम नेक निहारो मोहि
'दयादास' तन हे प्रभू लहर मेहर की होहि
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राम रमैया रमापति राम-चंद्र रघुबीर
राघव रघुबर राघवा राधारमन अहीर
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पारब्रह्म परमात्मा पुरुषोत्तम पर्महंस
पदमनाम पीताम्बर परमेसुर परसंस
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मकसूदन मोहन मदन माधो मच्छ मुरार
मदहारी श्रीमुकुटघर मधुपुर मल्ल-पछार
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सुनत दीनता दास की बिलम कहूँ नहिं कीन
'दयादास' मन कामना मनभाई कर दीन
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अबिनासी चेतन पुरुष जग झूठो जंजाल
हरि चितवन में मन मगन सुख पायो तत्काल
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जो जाकी ताकै सरन ताको ताहि खभार
तुम सब जानत नाथ जू कहा कहौं बिस्तार
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तीन लोक में हे प्रभू तुम हीं करो सो होय
सुर नर मुनि गंधर्ब जे मेटि सकैं नहिं कोय
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अर्ध उर्ध मधि सुरति धरि जपै जु अजपा जाप
'दया' लहै निज धाम कूँ छुटै सकल संताप
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'दयाकुँवर' या जक्त में नहीं रह्यो थिर कोय
जैसो बास सराँय को तैसो ये जग होय
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साध साध सब कोउ कहै दुरलभ साधू सेव
जब संगति ह्वै साध की तब पावै सब भेव
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ऐंचा खैंची करत हैं अपनी अपनी ओर
अब की बेर उबार लो त्रिभुवन बंदी-छोर
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तुम्हीं सूँ टेका लगौ जैसे चंद्र चकोर
अब कासूँ झंखा करौं मोहन नन्दकिसोर
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मलयागिर के निकट हीं सब चंदन हो जात
छूटै करम कुबासना महा सुगंध महकात
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बज्रै तिनका करत हौ तिनकै बज्र बनाय
मेहर तुम्हारी हे प्रभू सागर गिरि उतराय
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कर्म फाँस छूटै नहीं थकित भयो बल मोर
अब की बेर उबारि लो ठाकुर बंदीछोर
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'दया' प्रेम उनमत्त जे तन की तनि सुधि नाहिं
झुके रहैं हरि रस छके थके नेम ब्रत नाहिं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere