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Fard Phulwarwi's Photo'

फ़र्द फुलवारवी

1777 - 1848 | फुलवारी शरीफ़, भारत

ख़ानक़ाह मुजीबिया, फुलवारी शरीफ़ के सज्जादा-नशीं और बिहार के मुमताज़ फ़ारसी-गो शाइ’र

ख़ानक़ाह मुजीबिया, फुलवारी शरीफ़ के सज्जादा-नशीं और बिहार के मुमताज़ फ़ारसी-गो शाइ’र

फ़र्द फुलवारवी का परिचय

शाह अबुल-हसन फ़र्द फुलवारवी हज़रत पीर मुजीबुल्लाह क़ादरी के पोते, शाह ने’मतुल्लाह क़ादरी के बड़े साहिब-ज़ादे और ख़ानक़ाह-ए-मुजीबिया, फुलवारी-शरीफ के नामवर सज्जादा-नशीन गुज़रे हैं। आपका तख़ल्लुस फ़र्द है। फुलवारी-शरीफ में 1191 हिज्री में पैदा हुए। इब्तिदाई ता’लीम वालिद से हुई और तक्मील मौलाना अहमदी से की जो अपने वक़्त के जय्यिद आ’लिम थे। 1247 हिज्री में शाह अबुल-हसन फ़र्द फुलवारवी ख़ानक़ाह-ए-मुजीबिया के सज्जादा-नशीन हुए और रुश्द-ओ-हिदायत का सिलसिला जारी रखा बल्कि मज़ीद उस में चार-चांद लगा दिया। फ़र्द फुल्वारवी फ़ितरी शाइ’र थे। उन्हें बचपन ही से शे’र-ओ-शाइ’री का शौक़ रहा। अपने चचा-ज़ाद भाई हज़रत नूरुल-हक़ तपाँ फुलवारवी से मश्वरा-ए-सुख़न लेते रहे। ख़ुदा-दाद ज़िहानत थी। हाफ़िज़, सा’दी, जामी, उ’र्फ़ी और ख़ुसरो के कलाम का मुतालिआ’ किया और उनके अंदाज़-ए-शाइ’री को भी पसंद किया करते थे।फ़र्द में हाफ़िज़ का रंग ज़्यादा पाया जाता है। हक़ीक़त ये है कि फ़र्द फुलवारवी फ़ारसी के क़ादिरुल-कलाम शाइ’र थे और आज भी मज्लिस-ए-समाअ’ में उनके फ़ारसी कलाम ही ज़्यादा-तर गाए जाते हैं। फ़र्द ने ग़ज़ल-ओ-ना’त के अ’लावा रुबाइ’यात, क़सीदा, मस्नवी और क़ित्आ’त-ए-तारीख़ भी लिखी हैं । फ़र्द का शुमार असातिज़ा-ए-वक़्त में होता है। उर्दू और फ़ारसी दोनों ज़बानों में शाइ’री की मगर शोहरत उनके फ़ारसी कलाम को मिली। उनकी ज़बान में सफ़ाई भी है और नाज़ुक ख़याली भी। प्रोफ़ेसर अहमदुल्लाह नदवी लिखते हैं। “हज़रत फ़र्द की उर्दू शाइ’री भी अपनी नुदरत-ए- ख़याल, बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ और अपने उस्लूब-ए-बयान के लिहाज़ से ला-जवाब होती थीं और आपका उर्दू कलाम सूबा-ए-बिहार में अपने मुआ’सिरीन पर फ़ौक़ियत रखता था''। बिहार की सूफ़ियाना शाइ’री में शाह अबुल-हसन फ़र्द फुलवारवी का नाम नुमायाँ तौर पर लिया जाता है। फ़र्द का इंतिक़ाल 24 मुहर्रमुल-हराम 1265 हिज्री मुवाफ़िक़ 1848 ई’स्वी को हुआ और बाग़-ए-मुजीबी में मद्फ़ून हुए।


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