ग़फ़ूर शाह वारसी के अशआर
बार-ए-अजल उठाए जो कोई ख़ुशी ख़ुशी
ताक़त ये किस में है तेरे बीमार के सिवा
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सोचा कभी न इ’श्क़ में कुछ प्यार के सिवा
हसरत कोई न की तेरे दीदार के सिवा
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere