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लताफ़त वारसी

1817 - 1905 | शेख़पुरा, भारत

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और क़सीदा-गो शाइ’र

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और क़सीदा-गो शाइ’र

लताफ़त वारसी का परिचय

उपनाम : 'लताफ़त'

मूल नाम : लतफ़त हुसैन

जन्म :मुंगेर, बिहार

निधन : बिहार, भारत

मौलाना लताफ़त हुसैन वारसी फ़ारसी ज़बान के सूफ़ी शाइ’र थे। साल 1890 ई’स्वी में हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद हुए। आप शैख़पुरा ज़िला' मुंगेर के रहने वाले थे। आप एक सय्याह फ़क़ीर थे। दौरान-ए-सफ़र आप हाजी वारिस अ’ली की ख़िदमत में क़सीदा सुनाते और उन्हें महफ़ूज़ करते थे। उनके सफ़र का वाहिद मक़सद अपने पीर-ओ-मुर्शिद की नज़र-ए-इ’नायत हासिल करके ख़िदमत-ए-ख़लक़ में फ़ना होना था। लताफ़त हुसैन वारसी आ’लिम-ए-दीन थे। वो मुंशी भी कहे जाते थे। उन्होंने 70 क़सीदों की तख़्लीक़ की है। उनके क़सीदा का ये शे’र मुलाहिज़ा फ़रमाएं जिसमें उन्होंने अपने पीर-ओ-मुर्शिद की ज़ियारत की ख़्वाहिश की है। ऐ क़िब्ला-गह-ए- ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन ऐ का’बा-ए- इक़ान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन लताफ़त हुसैन वारसी ने क़सीदा के अ’लावा, मुसद्दस और मुख़म्मस भी लिखे हैं।


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