माहिरुल क़ादरी के अशआर
लेके दिल में मोहब्बत की पाकीज़गी घर से निकले थे दैर-ओ-हरम के लिए
हम जुनूँ में न जाने कहाँ आ गए माह-ओ-अंजुम ने बोसे क़दम के लिए
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कितने कम-ज़र्फ़ दुनिया में वो लोग हैं इक ज़रा ग़म मिला आँख नम हो गई
ग़म भी अल्लाह की इक बड़ी देन है हौसला चाहिए ज़ब्त-ए-ग़म के लिए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere