क़मर वारसी का परिचय
क़मर वारसी, हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद थे। आप सिलसिला-ए-वारसिया के मख़्सूस शो’रा में शुमार किए जाते हैं। बचपन ही से शे’री ज़ौक़ था। उन्होंने मुख़्तलिफ़ अस्नाफ़-ए-सुख़न में तब्अ’-आज़माई की है मगर ना’तें ज़्यादा कही हैं। आपके अश्आ’र में फ़ारसी तरकीबों का इस्ति’माल ख़ूब-ख़ूब मिलता है। ना’तों का अंदाज़ सादा और सलीस है। आपने सहल-ए-मुम्तनअ’ की शाइ’री की है। ब-क़ौल क़मर वाबस्ता रख हुज़ूर से दामन हयात का ऐ दिल यही है एक ज़रिआ’ निजात का क़मर वारसी के पहला मज्मूआ’ का नाम “शम्सुज़्ज़ुहा” और दूसरा “कैफ़िल-वारा' के नाम से शाए’ हो चुका है। अदबी दुनिया में उनकी काफ़ी पज़ीराई हुई है।