क़सीम वारसी का परिचय
सय्यद क़सीमुद्दीन नाम और ‘क़सीम’ तख़ल्लुस था। क़लमी नाम क़सीम शहसरामी है। आपकी पैदाइश 23 फरवरी 1971 ई’स्वी में भोजपुर के क़स्बा पैरू में हुई। अस्ल वतन शहसराम है मगर ज़ियाउद्दीन ख़ाँ वारसी दरगाह पैरू, भोजपुर में सुकूनत-पज़ीर हैं। आपके वालिद का नाम हकीम सय्यद शहाबुद्दीन वारसी शहसरामी था जो निहायत ही मिल्नसार और मुख़्लिस इन्सान थे आपने इब्तिदाई ता’लीम मदरसा से हासिल की। लिखने पढ़ने का शौक़ शुरूअ’ से रहा लिहाज़ा दरस-ओ-तद्रीस के कामों में मश्ग़ूल हुए। उस दर्मियान शार-ओ-शाइ’री का सिलसिला भी चलता रहा। शाइ’री क़सीम वारसी शहसरामी को विरासत में मिली थी। उनकी पहली पुश्त में सय्यद ग़ुलाम मख़्दूम मस्त शहसरामी, दूसरी पुश्त में सय्यद क़मरुद्दीन कैफ़ शहसरामी, सय्यद शहाबुद्दीन वारसी शहसरामी, सय्यद अ’ली अहमद यूसुफ़ शहसरामी और तीसरी पुश्त में सय्यद जावेद आ’लम शौक़ शहसरामी, मुनीर सैफी, ऐ’जाज़ आ’लम ज़ौक़ शहसरामी, इम्तियाज़ आ’लम राही शहसरामी, कफ़ील अनवर, आ’लम परवेज़, इर्शाद आरज़ू और तौक़ीर आ’लम वग़ैरा शो’रा-ए-किराम गुज़र चुके हैं। फ़ी-ज़मानिना चौथी पुश्त का आग़ाज़ क़सीम वारसी शहसरामी से हो चुका है। ब-क़ौल क़सीम कि हमको विरसे में मिली है ये अदब की दौलत मह्फ़िल-ए-शे’र-ओ-सुख़न से है रिश्ता मेरा। क़सीम वारसी राक़िम शाह वारसी के ज़रिआ’ सिलसिला-ए-वारसिया में दाख़िल हुए थे। उन्हें हाजी वारिस अ’ली शाह से वालिहाना अ’क़ीदत थी। क़सीम मज़हबी जल्सों में कस्रत से बुलाए जाते थे। ना’त-ए-पाक तरन्नुम में सुनाते थे। उनके कलाम रसाइल-ओ-जराइद में भी छपा करते थे। अब तक दो मज्मूआ’ “कलाम आबशार” और “आबशार-ए-रहमत” शाए’ हो चुका है