क़ाज़ी महमूद दरियाई का परिचय
काज़ी महमूद 'दरियाई' के पिता काज़ी मोहम्मद हमीद थे जिनके तीन बेटों में दरियाई का झुकाव बचपन से ही तसव्वुफ़़ की तरफ़ था। ये हमेशा जिक्र-ए-इलाही से मस्त रहते थे। शीघ्र ही इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी। गुजरात की मील जाति उन्हें बहुत मानती थी और इन्हें ख़्वाजा ख़िज्र के नाम से पुकारती थी। दरियाई की दो रचनाएँ मशहूर हैं- (1) मिफ़्ताहुल कुलूब (2) तोहफ़ा-ए- तुलकारी। इसके अलावा इन्होंने मल्हार, रामकली, पूर्वी, टोडी, घनासरी आदि राग-रागनियों में भावपूर्ण गेय छंदों की रचना की है। इनकी रचनाओं में प्रेम की पीड़ और मिलन की तीव्र उत्कंठा और व्याकुलता है। इनकी कविता अनपढ़ और पढ़े- लिखे, सभी में लोकप्रिय है। शताब्दियाँ बीत जाने के बाद भी संगीत-प्रेमियों के द्वारा उनकी रचनाएँ गुजरात, सौराष्ट्र, मालवा, राजस्थान आदि प्रदेशों में दूर-दूर तक गाई जाती है।