رام رہس داس
پد 1
ساکھی 3
द्वन्द्वज सत्य असत्य को, जहां नहीं कुछ लेश ।
सो प्रकाशक गुरु परख है, मेटत सकल कलेश ।।
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प्रथमहि शब्द सुधारिके, टारे त्रयविध जाल।
झांई मेटत संधिको, ऐसो शरण दयाल ।।
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राम रहस साहब शरण, अभय अशंक उदोत।
आवागमन की गम नहीं, भोर सांझ नहिं होत।।
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