साधु निश्चलदास का परिचय
साधु निश्चलदास की जन्म-तिथि का पता नहीं चलता। केवल इतना ही विदित है कि उनका जन्म-स्थान पूर्वी पंजाब प्रान्त के हिसार जिले की हासी तहसील का कूंगड़ नामक गाँव था।
वे जाति के विचार से जाट थे। उनका शरीर बहुत सुन्दर और सुडौल था। उनकी बुद्धि तीव्र थी तथा उन्हें विधोपार्जन की लगन भी थी। संस्कृत पढ़ने की लालसा से उन्होंने अपने को
ब्राह्मण बालक घोषित कर काशी के पंडितों से सभी शास्त्रों का अध्ययन किया। व्याकरण, दर्शन, साहित्य, आदि में पारंगत होकर वे एक प्रकांड विद्वान हो गए। किन्तु पहले से ही दादू
पंथ में दीक्षित हो चुकने तथा जाट जाति के होने के कारण उन्हें काशी में विरोध का भी सामना करना पड़ा। अन्त में वे वहां से चले आए। कहते हैं कि न्यायशास्त्र का विशेष अध्ययन
उन्होंने नदिया (बंगाल) जाकर किया था और छन्दशास्त्र प्रसिद्ध विद्वान रसपुंज से पढ़ा था। उन्होंने किहडौली में एक पाठशाला वेदान्त पढ़ाने के लिए खोली और बूँदी जाकर वहाँ के राजा
रामसिंह से बहुत सम्मान प्राप्त किया। उनके ग्रन्थों में विचारसागर तथा वृत्तिप्रभाकर अधिक प्रसिद्ध हैं। इनमें उनके प्रखर पांडित्य एवं परिष्कृत विचारों का अच्छा परिचय मिलता है।
उनका देहान्त सं0 1920 में हुआ था।