Sufinama
noImage

साधु निश्चलदास

साधु निश्चलदास

कविता 1

 

साखी 4

अंतर बाहिर एकरस, जो चेतन भर पूर।

बिभु नभ सम सो ब्रह्म है, नहिं नेरे नहिं दूर।।

  • शेयर कीजिए

ब्रह्मरूप अहि ब्रह्मवित, ताकी बानी बेद।

भाषा अथवा संस्कृत, करत भेद भ्रम छेद।।

  • शेयर कीजिए

भ्रमन करत ज्यूं पवन तैं, सूको पीपर पात।

शेष कर्म प्रारब्ध तै, क्रिया करत दरसात।।

  • शेयर कीजिए

सत्यबंध की ज्ञान तैं, नहीं निवृत्ति सयुक्त।

नित्य कर्म संतत करैं, भयो चहै जो मुक्त ।।

  • शेयर कीजिए

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए