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सहजो बाई

1725 | दिल्ली, भारत

संत चरण दास जी की शागिर्दा हैं, उनकी तख़लीक़ात का मज्मू'आ सहज प्रकाश के नाम से शाए’ हुआ है

संत चरण दास जी की शागिर्दा हैं, उनकी तख़लीक़ात का मज्मू'आ सहज प्रकाश के नाम से शाए’ हुआ है

सहजो बाई के दोहे

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सब पर्वत स्याही करूँ घोलूँ समुंदर जाय

धरती का कागद करूँ गुरु अस्तुति समाय

ज्ञान भक्ति अरु जोग का घट लेवै पहँचान

जैसी जाकी बुद्धि है सोइ बतावै ध्यान

सिख का माना सतगुरू गुरु झिड़कै लख बार

'सहजो' द्वार छोड़िये यही धारना धार

गुरु पग निश्चै परसिये गुरु पग हृदय राख

'सहजो' गुरुपग ध्यान करि गुरु बिन और भाख

गुरु मग दृढ़ पग राखिये डिग मिग डिग मिग छाँड

'सहजो' टेक टरै नहीं सूर सती जो माँड

हरि करिपा जो होय तो नाहिं होय तो नाहिं

पै गुरु किरपा दया बिनु सकल बुद्धि बहि जाहिं

साध कहावै आप में चलै दुष्ट की चाल

बाद लिये फूला फिरै बहुत बजावै गाल

अब तीरथ गुरु के चरन नित ही परवी होय

'सहजो' चरनोदक लिये पाप रहत नहिं कोय

सद्गुरुमहिमा - गुरु आज्ञा दृढ करि गहै गुरुमत सहजो चाल

रोम रोम गुरु को रटै सो सिष होय निहाल

निर्मल आनँद देत हौ ब्रह्म रूप करि देत

जीव रूप की आपदा व्याधा सब हरि लेत

गुरु हैं चारि प्रकार के अपने अपने अंग

गुरु पारस दीपक गुरु मलयागिरि गुरु भृंग

परमहंस तारन तरन गुरु देवन गुरु देव

अनुभै वाणी दीजिये सहजो पावै भेव

अड़सठ तीरथ गुरु चरण परवी होत अखंड

'सहजो' ऐसो धाम ना सकल अंड ब्रह्मंड

गुरू वचन हियरे धरै ज्यों किर्पिन के दाम

भूमि गड़े माथे दिये 'सहजो' लहै तो राम

गुरु अज्ञा मानै नहीं गुरुहिं लगावें दोष

गुरु निंदक जग में दुखी मुये पावै मोष

जो कछु करै तो मन दुखी मेटैं गुरु मुख रीत

भेद वचन समझै नहीं चलै चाल विपरीत

सद्गुरुमहिमा - कर जोरूं प्रणाम कारि धरूँ चरन पर सीस

दादा गुरु सुखदेव जी पूरण विश्वा बीस

सद्गुरुमहिमा - चरनदास समरथ गुरु सर्व अंग तिहिमाहिं

जैसे को तैसा मिलै रीता छाँड़ै नाहिं

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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