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Sufinama
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वाजिद वारसी

वाजिद वारसी के अशआर

इक वो कि बे-कहे हमें देता है ने'मतें

इक हम कि हम से शुक्र अदा भी हो सके

जौर-ओ-जफ़ा का मुझ से गिला भी हो सके

पास-ए-अदब से तर्क-ए-जफ़ा भी हो सके

तौबा का टूटना था कि रुख़्सत हुई बहार

एहसान-मंद-ए-जुर्म-ओ-ख़ता भी हो सके

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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