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ज़फ़र काकवी

1939 - 2005 | सासाराम, भारत

हश्र शहसरामी के शागिर्द

हश्र शहसरामी के शागिर्द

ज़फ़र काकवी का परिचय

उपनाम : 'ज़फ़र'

मूल नाम : ज़फ़र ईमाम रज़्वी

जन्म : 01 Jan 1939 | गया, बिहार

निधन : बिहार, भारत

ज़फ़र रिज़वी काकवी की पैदाइश अपनी ननिहाल मौज़ा काबिर ज़िला गया में 2 ज़िल्हिज्जा 1354 हिज्री और ब-ऐ’तबार-ए-सनद 15 जनवरी 1939 ई’स्वी को हुई|आपका अस्ल नाम सय्यद ज़फ़र इमाम रिज़्वी और तारीख़ी नाम मुहम्मद ज़फ़र इमाम हैؔ|आपके वालिद मौलाना सय्यद मूसा रज़ा इब्न-ए-मुंशी सय्यद हैदर रज़ा एक जय्यि द आ’लिम-ओ-फ़ाज़िल थे| ख़ानक़ाह-ए-किब्रिया, शहसराम के मदरसा में अ’र्सा तक मुदर्रिस-ए- दोउम के ओ’ह्दे पर फ़ाइज़ रहे और यहीं वफ़ात पाई| वालिद की वजह से ज़फ़र काकवी भी शहसराम ही में सुकूनत इख़्तियार कर ली और यहीं से ता’लीम पाई| उर्दू-ओ-फ़ारसी और अ’रबी की ता’लीम वालिद के साया ही में मदरसा किब्रिया में हुई| फिर स्कूल में दाख़िल हुए| मैट्रिक से क़ब्ल वालिद का इंतिक़ाल हो गया |आपने मैट्रिक 1954 हिज्री में शहस राम हाई स्कूल से पास किया और 1957 ई’स्वी में इंटर मीडियट की डिग्री शांति प्रशाद जैन कॉलेज से हासिल की | फ़िक्र-ए-मआ’श लाहिक़ होई तो 1959 ई’स्वी में रजिस्ट्रेशन ऑफ़िस में कलर्की के ओ’ह्दे पर मा’मूर हुए|1975 ई’स्वी में प्राइवेट तौर पर शांति प्रशाद जैन कॉलेज शहसराम से बी. ए पास किया| आपके वालिद भी शाइ’र थे और रज़ा तख़ल्लुस करते थे | उर्दू और फ़ारसी दोनों ज़बानों में शे’र कहते थे। ख़ुद ज़फ़र रिज़्वी काकवी लिखते हैं कि “नसब-नामा और ख़ानदानी हालात की ज़्यादा वाक़फ़ियत तो नहीं लेकिन काको के शरीफ़ और ज़मींदार ख़ानवादा से तअ’ल्लुक़ रखता हूँ| ख़ानदान के तीन फ़र्द मुसम्मा क़ाज़ी सय्यद मुहम्मद अफ़्साह, क़ाज़ी सय्यद मुहम्मद अस्लह और क़ाज़ी सय्यद ताज मुहम्मद, पर्गना भलावर के क़ाज़ी मा’मूर रहे हैं| ज़मींदारी के ख़ातमा तक ब-शमूल दीगर मवाज़िआ’त के एक तौज़ीअ’ चक ताज मुहम्मद के नाम से मेरे ख़ानदान के क़ब्ज़े में थी| इ’ल्म-ओ-अदब और ख़ुश-नवीसी-ओ-ख़त्ताती विर्सा में मिली| दादा मुंशी सय्यद मुहम्मद हैदर रज़ा मरहूम और वालिद बहुत अच्छे ख़ुश-नवीस और फ़न्न-ए-हर्ब के माहिर थे (शिकस्त-ए-साज़), सफ़हा 14) ज़फ़र रिज़वी काकवी को शुरूअ’ से शाइ’राना सोहबीत मिली मगर इस फ़न्न की शुरूआ’त 1956 ई’स्वी से हुई | अदबी सर्गर्मियों में हिस्सा लिया और नव-जवानी में शाइ’र मश्शाक़ी कहलाने लगे, आप हश्र शह्सरामी तलमीज़ जलील मीनाई और सीमाब अकबराबादी से इस्लाह लेते थे, ज़फ़र काकोवी ने ग़ज़लें ज़्यादा कही अगर्चे दूसरे अस्नाफ़-ए-सुख़न में भी उनका कलाम मिलता है। ज़फ़र रिज़्वी काकोवी का इंतिक़ाल 2005 ई’स्वी को शहसराम में हुआ।


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