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गूजरी सूफ़ी काव्य
गधा चरे तो हो दुबला न नखें मोटा होए
गधा चरे तो हो दुबला न नखें मोटा होएन जानो खाए किस दुखों झर-झर पिंजरा होए
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
"तो मैं अपना गधा कहां बांधू?""तुम्हारे गधे के बारे में मैं क्यों सिरदर्द मोल लूं?"
लियोनिद सोलोवयेव
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दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा परहेज़-गार-ओ-शैतान
बुरे कूँ पहले पंद सूँ क्या ख़बरगधा क्या बूझे ज़ाफ़रान की क़दर
अली रहमती
सूफ़ी कहावत
ख़र-ए-ईसा गरश ब मक्का बरंद, चूं ब आयद हुनूज़ ख़र बाशद
हज़रत ईसा के गधे को मक्का ले जाया जाए, लौटने पर भी वह गधा ही रहेगा
वाचिक परंपरा
सूफ़ी प्रतीक
ख़र-ए-ईसा
अर्थात– यदि ईसा के गधे को मक्का ले जाएँ तो जब वह वापस आएगा तब भी गधे का गधा ही रहेगा.
अज्ञात
सूफ़ी लेख
हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
और जब मौत के दरवाज़ा पर फ़-क-श्फ़ना अ’न्का-ग़िता-अ-क- (आज के दिन हम तुम्हारी आँखों का पर्दा
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
जो कुछ ख़ुदा तआ’ला ’इनायत करे उस पर राज़ी रह, और अगर वो बे-वतनी देवे तो
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
सूफ़ी कहानी
एक मुसाफ़िर सूफ़ी के गधे को सूफ़ियों का बेच खाना- दफ़्तर-ए-दोम
मुसाफ़िर सूफ़ी ने अपने जी में कहा जब कि इन सूफ़ियों का मैलान मेरी तरफ़ इस
रूमी
सूफ़ी कहानी
हिकायात- 3
"एक बुज़ुर्ग थे जो बाग़बानी के ज़रिये' गुज़र बसर करते थे। हाकिम-ए-वक़्त को लोगों ने उनके
अमीर हसन अला सिज्ज़ी
सूफ़ी कहानी
कहानी -14-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक बवक़ूफ़ आदमी की आँख में दर्द हआ। वह मवेशियों के चिकित्सक के पास चला गया