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आसी गाज़ीपुरी

1834 - 1917 | गाज़ीपुर, भारत

चौदहवीं सदी हिज्री के मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र और ख़ानक़ाह-ए-रशीदिया जौनपूर के सज्जादा-नशीं

चौदहवीं सदी हिज्री के मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र और ख़ानक़ाह-ए-रशीदिया जौनपूर के सज्जादा-नशीं

आसी गाज़ीपुरी

ग़ज़ल 25

शे'र 67

कलाम 4

 

दोहा 7

ओस ओस सब कोई कहे आँसू कहै कोय

मोहि विरहिन के सोग मे रैन रही है रोय

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हम तुम स्वामी एक है कहन सुनन को दोय

मन को मन से तोलिए दो मन कभी होय

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काजर दूँ तो किरकिराए सुर्मा दिया जाए

जिन नैनन माँ पिय बसै दूजा कौन समाए

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मै चाहूँ कि उड़ चलूँ पर बिन उड़ा जाय

काह कहौं करतार को जो पर ना दिया लगाय

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मन मा राखूँ मन जरे कहूँ तो मुख जरि जाय

गूँगे का सपना भयो समझ समझ पछताय

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