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चरनदास जी

1703 - 1839 | मेवाड़, भारत

चरनदास जी

दोहा 49

अपना करि सेवन करैं तीन भाँति गुर देव

पंजा पच्छी कुंज मन कछुवा दृष्टि जु भेव

सतगुरू के मारे मुए बहुरि उपजै आय

चौरासी बंधन छुटैं हरिपद पहुँचै जाय

गुरू के आगे जाय करि ऐसे बोलै बोल

कछू कपट राखै नहीं अरज करै मन खोल

दया होय गुरूदेव की भजै मान अरू मैन

भोग वासना सब छुटै पावै अति ही चैन

दृष्टि पड़ै गुरूदेव की देखत करें निहाल

औरैं मति पलटैं तवै कागा होत मराल

चौपाई 2

 

राग आधारित पद 3

 

अष्टपदी 4

 

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