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रज्जब

1557 | सांगनेर, भारत

रज्जब

साखी 6

कोयल अंडे काक गृह, सुत निपजे पर सेव

त्यों रज्जब शिष भाव को, प्रति पाले गुरू देव ।।

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'रज्जब' राम रहम कर अक्षर लिखे भाल

ताथें सद्गुरू ना मिलया गुरू शिष रहे कंगाल

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अथ जतन का अंग - जन 'रज्जब' राखे बिना नाम राख्या जाय

जैसे दीपक जतन बिन विसवाबीस बुझाय

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सांई लग सेवा रची टरया अपनी टेक

दादू सम नहिं दूसरा दीरध दास सु एक

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तन मन धक्का देत है पुनि धक्का पंच भूत

'रज्जब' इन में ठाहरै सो आतम अबधूत

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