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Sufinama
Rajjab's Photo'

रज्जब

1557 | सांगनेर, भारत

रज्जब की साखी

गुरू दादू रू कबीर की काया भयी कपूर

जन 'रज्जब' उनकी दया पाई निश्चल ठौर

अथ जतन का अंग - जन 'रज्जब' राखे बिना नाम राख्या जाय

जैसे दीपक जतन बिन विसवाबीस बुझाय

तन मन धक्का देत है पुनि धक्का पंच भूत

'रज्जब' इन में ठाहरै सो आतम अबधूत

सांई लग सेवा रची टरया अपनी टेक

दादू सम नहिं दूसरा दीरध दास सु एक

'रज्जब' राम रहम कर अक्षर लिखे भाल

ताथें सद्गुरू ना मिलया गुरू शिष रहे कंगाल

कोयल अंडे काक गृह, सुत निपजे पर सेव

त्यों रज्जब शिष भाव को, प्रति पाले गुरू देव ।।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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