सदिक़ देहलवी का परिचय
सादिक़ देहलवी का पूरा नाम मुहम्मद यसीन ख़ाँ और वालिद का नाम हाजी अमीर ख़ाँ इब्न-ए-अ’ब्दुल ग़नी ख़ाँ औलिया था। दिल्ली के मशहूर कारख़ाना-दार थे। सादिक़ देहलवी नेक तबीअ’त और शरीफ़ आदमी थे। उनकी पैदाइश 12 जून 1926 ई’स्वी को दिल्ली के मशहूर बाज़ार लाल कुआँ में हुई। सादिक़ देहलवी शाइ’र थे मगर शाइ’री उनका ज़रिआ’-ए-मआ’श नहीं थी बल्कि आबाई पेशा संअ’त-ओ-हिर्फ़त से अपने बाल बच्चों का पेट भरते थे। ग़ुर्बत के बावजूद उन्होंने कभी फिक्र-ओ-इफ़्लास का रोना नहीं रोया। इस मुआ’मले में सादिक़ देहलवी से ज़्यादा उनकी नेक- सीरत रफीक़ा-ए-हयात क़ाबिल-ए-ता’रीफ़ थीं। सादिक़ की ता’लीम प्राइमरी तक रही लेकिन बा-कमाल असातिज़ा और सूफ़ियों की मेहनत-ओ-मशक़्क़त ने सादिक़ को बहुत जल्द शे’र-ओ-सुख़न के अ’लावा दीनियात का भी आ’लिम बना दिया था। दो मर्तबा हज्ज को गए और फिर नजफ़ -ए-अशरफ़, कर्बला-ए-मुअल्ला, बग़्दाद, कूफ़ा, बस्रा तक का सफ़र किया। सादिक़ देहलवी ने ग़ज़ल वग़ैरा के अ’लावा ना’त-ए-पाक और सूफ़ियों की शान में मंक़बत भी ख़ूब कही हैं। अ’वाम में उनकी ज़्यादा-तर मक़्बूलियत ना’त-ओ-मंक़बत की वजह से है। सादिक़ को ख़्वाजा मुहम्मद हसन जहाँगी री भेंसोड़ी से बैअ’त का शरफ़ हासिल था और उन्हीं से इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त भी हासिल थी। सादिक़ का कलाम रेडियो से भी नश्र होता था और ना’त-ख़्वाँ हज़रात भी उनकी ना’त-ओ-ग़ज़ल पढ़ा करते थे। सादिक़ अक्सर सूफ़ियों की सोहबत में बैठा करते थे इसलिए मिज़ाज भी सूफियाना पाया। उनके मुरीदीन-ओ-मो’तक़िदीन भी अच्छे ख़ासे हुए जिन्हों ने सादिक़ का ख़ूब चर्चा किया और उनकी कुल्लियात-ए-सादिक़ को अ’वाम-ओ-ख़्वास में एक पहचान दिलाई। सादिक़ देहलवी का इंतिक़ाल 22 जून 1986 ई’स्वी को इतवार की शाम में गली मस्जिद, मीर करोड़ा, क़ासिम जान स्ट्रीट, लाल कुआँ दिल्ली में हुआ।