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अहमद रज़ा ख़ान

1856 - 1921 | बरेली, भारत

हिंदुस्तान के मशहूर आ’लिम-ए-दीन और ना’त-गो शाइ’र

हिंदुस्तान के मशहूर आ’लिम-ए-दीन और ना’त-गो शाइ’र

अहमद रज़ा ख़ान का परिचय

उपनाम : 'रज़ा'

मूल नाम : अहमद रज़ा

जन्म : 01 Jun 1856 | बरेली, उत्तर प्रदेश

निधन : 01 Oct 1921 | उत्तर प्रदेश, भारत

अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी को आ’ला हज़रत, मुजद्दिद मिअत -ए-हाज़िरा जैसे अल्क़ाबात से भी याद किया जाता है। आपकी पैदाइश 10 शव्वालुल-मुकर्रम 1272 हज्री मुताबिक़ 14 जून 1856 ईस्वी को सौदागरान बरेली में हुई। आप शिमाली भारत के शहर बरेली के एक मशहूर आ’लिम-ए-दीन थे। आपका तअ’ल्लुक़ फ़िक़्ह-ए-हनफ़ी से था। आपकी वजह-ए-शोहरत आपकी हुज़ूर सल्लल्लाहु अ’लैहि-व-आलिहि व-सल्लम से मोहब्बत, आप सल्लल्लाहु अ’लैहि व-सल्लम की शान में लिखे ना’तिया मजमूए’ और आपके हज़ारहा फ़तावे का ज़ख़ीम इ’ल्मी मजमूआ ’ है। आपके फ़तावे तक़रीबन 12 जिल्दों पर मुश्तमिल हैं जो फ़तावा-ए-रिज़्विया के नाम से मौसूम है। बर्र-ए-सग़ीर पाक-ओ-हिंद में अहल-ए-सुन्नत की एक बड़ी ता’दाद आप ही की निस्बत से बरेलवी कहलाती है। दीनी उ’लूम की तक्मील घर पर अपने वालिद मौलाना नक़ी अ’ली ख़ान से की। दो मर्तबा हज्ज-ए-बैतुल्लाह से मुशर्रफ़ हुए। दर्स -ओ-तदरीस के अ’लावा मुख़्तलिफ़ उ’लूम-ओ-फ़ुनून पर कई किताबें और रसाइल तस्नीफ़-ओ-ता’लीफ़ कीं। क़ुरआन का उर्दू तर्जुमा भी किया जो कंज़ुल-ईमान के नाम से मशहूर है। उ’लूम-ए-रियाज़ी-ओ-जफ़र में भी महारत रखते थे। आपको शे’र-ओ-शाइ’री से भी ख़ास्सा लगाव था। रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अ’लैहि-व-आलिही व-सल्लम की शान में बहुत सी ना’तें और सलाम लिखे हैं। इस फ़न में आपने किसी की शागिर्दी इख़्तियार नहीं की। अ’रबी, फ़ारसी और उर्दू में सैकड़ों किताबें तस्नीफ़ कीं। अहमद रज़ा बरेलवी का तअ’ल्लुक़ पठानों के क़बीला बड़ेच से था। आपके जद्द-ए-आ’ला सई’दुल्लाह ख़ान क़ंधार के पठान थे। सल्तनत-ए-मुग़लिया के अ’हद में मुहम्मद शाह के हम-राह हिन्दुस्तान आए और बड़े ओ'हदों पर फ़ाइज़ रहे। लाहौर का शीश-महल उन्ही के ज़ेर-ए-इक़्तिदार था। आपको मुग़ल बादशाह ने शश-हज़ारी के मंसब से सरफ़राज़ किया और शुजाअ’त जंग का ख़िताब दिया| उर्दू, फ़ारसी और अ’रबी पढ़ने के बा’द रज़ा बरेलवी ने अपने वालिद मौलाना नक़ी अली ख़ान से अ’रबी ज़बान में आ’ला ता’लीम हासिल किया। उर्दू फ़ारसी की किताबें पढ़ने के बा’द मिर्ज़ा ग़ुलाम क़ादिर बेग से मीज़ान, मुंशइ’ब वग़ैरा की ता’लीम हासिल की। फिर आपने अपने वालिद नक़ी अ’ली ख़ान से कई उ’लूम पढ़े। आपने तरीक़त की ता’लीम ख़ानक़ाह-ए-बर्कातिया मारहरा के सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद आल-ए-रसूल क़ादरी से हासिल की। मुर्शिद के विसाल के बा’द ता’लीम-ए-तरीक़त नीज़ इब्तिदाई इ’ल्म-ए- तफ़्सीर-ओ-इ’ब्तिदाई इ’ल्म-ए- जफ़र-वग़ैरा हज़रत सय्यद अबुल-हुसैन अहमद नूरी मारहरवी से हासिल फ़रमाया। शरह-ए- चग़्मीनी का बा’ज़ हिस्सा अ’ब्दुल अ’ली रामपूरी से पढ़ा। फिर आपने किसी उस्ताज़ से बग़ैर पढ़े महज़ ख़ुदा-दाद बसीरत-ए-नूरानी से उ’लूम-ओ-फ़ुनून में दस्तरस हासिल किया। आपने उर्दू, अ’रबी और फ़ारसी तीन ज़बानों में ना’त गोई-ओ-मन्क़बत निगारी की। आपका ना’तिया मजमूआ’ हदाएक़ -ए-बख़्शिश तीन जिल्दों में है। पहली दो जिल्दें आपकी हयात में और तीसरी, बा’द अज़ वफ़ात शाए' हुई मगर उस में रज़ा का तख़्ल्लुस रखने वाले एक दूसरे आ’म से शाइ’र का आ'मियाना कलाम भी दर आया जिस पर काफ़ी तन्क़ीद हुई। उस को तहक़ीक़ के बा’द निकाल दिया गया। हदाएक़-ए- बख़्शिश का उर्दू ना’तिया शाइ’री में एक अहम मक़ाम है। मुतअख़-ख़िरीन तमाम ना’त गो शो’रा ने उसे अपने लिए एक नमूना मश्क़ क़रार दिया। इस से पहले उर्दू ना’त सिर्फ़ अ’क़ीदत के तौर पर दीवान के शुरूअ’ में शामिल नज़र आती थी मगर हदाएक़-ए- बख़्शिश के बा’द उर्दू ना’त अदब का एक मुस्तक़िल हिस्सा बना। हदाइक़-ए- बख़शिश की ना’तें आज भी मशहूर-ओ-मा’रूफ़ हैं| मुस्तफ़ा जान-ए-रहमत पे लाखों सलाम शम्ए-ए’-बज़्म-ए-हिदायत पे लाखों सलाम आपका अ’रबी कलाम बसातीनुल-ग़ुफ़रान के नाम से मौजूद है| आपका फ़ारसी कलाम अर्मग़ान-ए- रज़ा के नाम से इदारा-ए-तहक़ीकात इमाम अहमद रज़ा ने पहली बार 1994 ई’स्वी में शाए’ किया। उस में हम्द, ना’त , मनाक़िब और रुबाइ’यात शामिल हैं| या रब ज़े मन बर शह-ए- अ’बरार दुरूदे बर-सय्यद-ओ-मौलाई-ए- मन-ए-जार दुरूदे बर आबूरू-ए- आँ क़िब्ला-ए- क़ौसैन सलामें बर चश्म-ए- ख़ता-पोश, अता बार दुरूदे आपने 25 सिफ़र 1340 हिज्री मुता’बिक़ 28 अक्तूबर 1921 ई’स्वी को जुमा' के दिन दाई-ए-अजल को लब्बैक कहा। आपका मज़ार बरेली शरीफ़ में आज भी ज़ियारत-गाह -ए-ख़ास-ओ-आ’म बना हुआ है।


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